कान्तापाल/ नैनीताल – यूं तो इन दिनों हर जगह रामलीलााओं की तालीम चल रही है, नैनीताल के भीमताल में कलाकार दिन रात अपने अभिनय के निखार के लिये कडी मेहनत कर रहे हैं लेकिन कुमांउ में होने वाली रामलीलाओं की बात ही कुछ और है। यहां की रामलीला भीमताल के एक स्थानीय ज्योतिषी प0 रामदत्त के लिखे रामचरित्र मानस के नाटक पर खेली जाती है। जिसकी शुरूआत 1916 में हुई थी।जिसमें शास्त्रीय संगीत पर आधारित रागों और धुनों पर संवाद अदायगी की जाती है। वक्त के मुताबिक इन में कई बदलाव आये फिर भी लोगों के बीच रामलीलाओं की लोकप्रियता में कोई कमी नही आई है और कलाकार अपने अभिनय को लेकर दिन रात मेहनत करते हुये दिखाई दे रहे है। लेकिन इस बार छोटे छोटे कलाकार भी इस रामलीला में अपने कला के माध्यम से दिन रात मेहनत में लगे हुए हैं वैसे तो नवरात्रि में हर जगह रामलीला का मंचन होता है। मगर नैनीताल के भीमताल व में रामलीला की तालीम का नजारा कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। सभी कलाकार रामलीला भवन में अपने हुनर के निखार के लिये कडी मेहनत में लगे है ताकि रामलीला के मंचन के समय कोई त्रुटि न हो सके।अाखिरकार हो भी क्यों ना क्योकि यहां की रामलीलाऐ साहित्य कला और संगीत के संगम की तरह है। अवधी भाषा में लिखे छन्द राग रागिनियों पर आधारित संगीत की बानगी पेश करती हैं । इन रामलीलाओं में राग विहाग जै जै वन्ती राधेश्याम के अलावा कई रागों में गाई जाती है। साथ ही अल्मोड़ा तर्ज की रामलीला को भी ध्यान में रखा गया है।