रिपोर्ट – कान्ता पाल/ नैनीताल – आसाराम बापू को उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ से फिर बड़ा झटका लगा है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने भी आशाराम के ऋषिकेश मुनि की रेती ब्रह्मपुरी निरगढ़ में वन भूमि पर कब्जे को अतिक्रमण मानते हटाने तथा वन विभाग को जमीन कब्जे में लेने के आदेश पारित किए हैं।
पूर्व में 21 दिसम्बर 2018 को न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने भी आसाराम को बड़ा झटका देते हुए ऋषिकेश के मुनि की रेती ब्रह्मपुरी निरगढ़ में वन भूमि पर आसाराम द्वारा किये गये कब्जे को अतिक्रमण मानते हुए हटाने तथा वन विभाग को इस स्थान को कब्जे में लेने के आदेश पारित किए थे।
आपको रेन फारेस्ट हाउस निवासी स्टीफन व तृप्ति ने वर्ष 2013 में वन विभाग में शिकायत की थी कि आसाराम के आश्रम के कर्मचारियों के द्वारा अतिक्रमण कर नाले में दीवार बना दी है। जिस भूमि पर कब्जा किया गया है, उसकी लीज लक्ष्मण दास के नाम पर थी, जो कि 1970 में खत्म चुकी है। इस पर नौ सितंबर 2013 को वन विभाग की ओर से वन भूमि खाली करने का नोटिस आसाराम को दिया गया, परंतु 17 सितंबर 2013 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नोटिस के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। इसके बाद वन विभाग द्वारा मामले में इंटरवेंशन डाली गई। वन विभाग की ओर से अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने अदालत को बताया कि लीज 1970 में समाप्त हो चुकी है और कानूनी रूप से लीज ट्रांसफर नहीं हो सकती। इस पर न्यायमूर्ति तिवारी की एकलपीठ ने शुक्रवार को मामले को सुनने के बाद स्थगनादेश को निरस्त कर दिया।