करनाल -हरियाणा में बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होते ही बीजेपी के अंदर महाभारत शुरू हो गया जो थमने का नाम नहीं ले रहा है l जिन्हे टिकट मिली उन्हें तो कमल खिला हुआ दिखा बाकि अपनी टिकट कटने से परेशान होकर सीधे बगावत पर उतर आये l बताया जा रहा है कि इस बार टिकट बंटवारा बंद कमरे में हुआ और जो उम्मीदवार कभी जनता के बीच दुःख दर्द देखने तक नहीं गये लेकिन उन्होंने अपने जुगाड़ को टिकट तक पहुंचा दिया और टिकट हासिल कर ली l जिससे बीजेपी में बगावत का उबाल आना निश्चित था l सबसे बड़ी भूल तो सीएम सिटी से शुरू हुई जिसका विधायक मुख्यमंत्री होते हुए भी सामान्य कार्यकर्त्ता को हेंडल नहीं कर सका और बाद में अपनी सीट छोड़कर लाडवा शिफ्ट हो गया ,ऐसा बीजेपी के कार्यकर्ताओं की जुबान पर ही चल रहा है l यह बगावत के सुर की चिंगारी पूरे प्रदेश में भड़क गई और बागियों की संख्या हर सीट पर चुनौती में बदल गई l बेशक बीजेपी में बगावत करने वाले पहले भी किसी न किसी पद पर विराजमान हैं और पहले सरकार का हिस्सा भी रह चुके हैं l
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो नेता पार्टी में दस साल पहले जुड़ गए थे उनका ही पार्टी पर कब्ज़ा हो गया और आम कार्यकर्त्ता तो झंडे और डंडे उठाने में ही रह गया l उनका कहना है कि उनकी कभी किसी मुसीबत के समय भी नहीं सुनी गई , और पार्टी के कर्णधार सिर्फ एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहे जैसा की अब टिकट बंटवारे के समय सामने आया है l वही लोग रणनीतिकार , वही सुझाव देने वाले, वही केंद्रीय नेतृत्व को ग्राउंड रिपोर्ट देने वाले ,इससे तो वही होगा जो वर्तमान में घटित हो रहा है l क्या केंद्रीय नेतृत्व को यह नहीं देखना चाहिए था कि उनके राज्य में जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है ,किसी भी ईमानदार ,निष्ठावान कार्यकर्ताओं से सारी जानकारी जुटानी चाहिए ताकि उन चापलूसों पर लगाम लग सके जो पार्टी को नुकसान पहुंचाते हैं और जमीनी सच से कोसों दूर रखते हैं l इसका परिणाम यह निकला कि ऐसे ही लोगों ने जुगाड़ के कारण टिकट की चाह में अपने आप को उम्मीदवार घोषित कर दिया क्योंकि वही सर्वे रिपोर्ट भेजने वाले जो थे l
हरियाणा में कोई भी कद्दावर नेता का बीजेपी में न होना भी बगावत का एक कारण बताया जा रहा है l बीजेपी को हरियाणा में पैर जमाए हुए 10 साल ही हुए हैं इससे पहले तो यह पार्टी चौ. देवीलाल के साथ दोयम दर्जे की पार्टी बनी रहती थी जिससे हरियाणा में कोई भी बीजेपी का कद्दावर नेता नहीं बन पाया l मनोहर लाल खट्टर को भी संघ के प्रचारक से सीधा मुख्यमंत्री बना दिया गया जिससे बीजेपी को हरियाणा में जमीनी पकड़ का पता ही नहीं चल सका l मुख्यमंत्री बनते ही मनोहर लाल तो सरकार चलाने में व्यस्त हो गए और उनके आसपास जो भी नेता आये वह अपने फायदे के हिसाब से ही उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे l जनाधार घटता चला गया और दूसरे कार्यकाल में बीजेपी को सिर्फ 40 सीटों से संतोष करना पड़ा और अन्य दल व निर्दलीयों के सहारे के साथ सरकार बनानी पड़ी l जिस कारण प्रशासन में सरकार की पकड़ भी मज़बूत नहीं रह पाई l