Karnal:लोकसभा के चुनाव प्रचार से तो अब साफ हो गया है कि बीजेपी का चेहरा केवल प्रधानमंत्री मोदी ही हैं l बीजेपी के उम्मीदवार तो अब अपने इसी सरूर में मशगूल है कि चलो इसी बहाने उम्मीदवारों का रास्ता आसान हो गया नहीं तो खून पसीना बहाकर भी ऐसी संतुष्टि नज़र नहीं आनी थी l जैसे कि बीजेपी के उम्मीदवार अभी से अपनी जीत के सपने संजोय न केवल घूम रहे हैं बल्कि पार्टी के बड़े पदाधिकारियों या कार्यकर्ताओं की सलाह के मुताबिक बस प्रचार में ही लगे हुए हैं l आम आदमी से न कोई सवाल न कोई जवाब न ही कोई समस्या को जानना , बस प्रचार का मतलब गाड़ी में बैठकर ज्यादा से ज्यादा किलोमीटर का सफर करके जैसे कि गांव ,कालोनी का नाम पता मालूम करना और हाथ जोड़कर फोटो खिचवाना ही पहली प्राथमिकता दिखाई दे रही है l क्योंकि प्रचार तो मोदी का मीडिया के जरिए हर रोज ही हो रहा है और लोग उनकी बात को सुन भी रहे हैं l बीजेपी द्वारा जारी प्रचार रथों में भी केवल मोदी की फोटो है जो यह दर्शाती है कि सब उम्मीदवारों द्वारा केवल मोदी के जरिए ही नैया पार लगाने की बात की जा रही है बस l
रियल ट्रुथ की टीम ने जब अलग अलग क्षेत्र के लोगों इंद्री से प्रमोद कुमार ,करनाल से भीमसेन गाँधी , धर्म सिंह से बात की तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमें तो मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनाना है ,यहाँ के उम्मीदवार से तो हम परिचित नहीं हैं l अब नए सांसद के बनने के पश्चात ही पता चलेगा कि वह अपने कार्य के प्रति जवाबदेह होगें या पहले जैसे सांसदों की तरह दिल्ली जाकर तो नहीं बैठ जाएंगे, पर यह तो वक्त ही बताएगा ,अभी तो वोट केवल मोदी को ही है l दबी जुबान में जो नेता वोट मांगते घूम रहे हैं वह साथ में ही यह भी कह रहे हैं कि सारा खेल सिर्फ मोदी का है कि जनता का इतना समर्थन मिल रहा है l विपक्ष का बिखराव होने के कारण बीजेपी की सदस्य्ता के लिए बड़े बड़े विपक्ष के धुरंधर भी बीजेपी की शरण में नतमस्तक हो रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा है l किसी बहाने अपने जनाधार को बरकरार रखने के लिए और अपने कार्यकर्ताओं के छोटे मोटे कार्यों को करवाने के लिए इससे अच्छा फार्मूला कोई और नहीं है l लोग तो यहाँ तक भी कह रहे हैं कि नेता दल बदल रहे हैं ,और हम सोच रहे हैं देश बदल रहा है l यानि जो पहले दूसरे दलों में सत्ता सुख भोग चुके हैं वह अब बीजेपी के कट्टर समर्थक होने का नाटक कर रहे हैं वो असली है या नकली यह तो वक्त ही बताएगा ,क्योंकि अगर किसी कारण नेता की कुर्सी चली जाती है या जाने का भय नज़र आता है तो सारी आस्था और वायदे एक दिन में ही नहीं बल्कि चंद मिनटों में ही हृदय परिवर्तन कर देते हैं l जैसे कि दिल्ली के उदित राज का बीजेपी छोड़ना और करनाल के अरविन्द शर्मा का बीजेपी में आना l