अजमेर – तलवारों के साए के बीच माँ अम्बे की ज्योत

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किशोर सिंह / अजमेर –  अजमेर में अरावली की पहाडियों पर स्थित माँ चामुंडा का ऐतिहासिक मंदिर बना हुआ है l यहाँ माँ चामुंडा हजारो सालो से साक्षात् विराजमान हो कर मनोकामनाए पुरी करती आई है ..माँ चामुंडा चौहान वंश की आराध्य देवी रही है..अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान प्रतिदिन यहाँ दर्शन के लिए आते थे और ये माँ चामुंडा का आशीर्वाद ही था की उन्होंने मोहम्मद गौरी को 17 बार युद्ध में परास्त किया l

अजमेर स्थित माँ चामुंडा का मंदिर का इतिहास एक हजार वर्ष से भी पुराना है ..ऐंनसाइकलोपीडिया ऑफ़ अजमेर के अनुसार बोद्ध काल में यहाँ बोद्ध धर्म के “हिन् यान” मत का मठ स्थापित था जिसे “तारा मठ” के नाम से जाना जाता था..तंत्र पर आधारित इस मठ में देवी की पूजा की जाती थी..तारा मठ के नाम से ही अजमेर में “तारागढ़” दुर्ग का निर्माण हुआ जो पुरे भारत में सर्वाधिक उंचाई पर बना किला था..तत्कालीन चौहान वंश के शासक माँ चामुंडा के मंदिर में नियमित रूप से आते थे..ये उनकी आराध्य देवी थी..पृथ्वी राज चौहान पर तो माँ चामुंडा की असीम कृपा रही है ..माँ ने उन्हें साक्षात दर्शन दे कर कहा की जब भी तुम पर कोई विपत्ति आए मै तुम्हारे पीछे चलूंगी और कोई भी शत्रु तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर पाएगा,लेकिन तुम पीछे मुड कर मत देखना …इतिहास गवाह रहा की सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने विदेशी आक्रान्ता मोहम्मद गौरी को सत्रह बार परास्त किया…ऐसी किदवंती है की मोहम्मद गौरी से अंतिम युद्ध के समय पृथ्वीराज चौहान के मन में शंका उत्पन्न हुई की देखू माँ चामुंडा मेरे पीछे आ रही है की नहीं ..जैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने पीछे मुड़ कर देखा माँ चामुंडा जमीन में समा गई केवल उनका सिर बाहर रहा..आज भी माँ चामुंडा मंदिर में केवल माँ का चेहरा ही नजर आता है उनका बाकी शरीर जमीन में धंसा है l

वैसे तो पुरे साल माँ चामुंडा मंदिर में श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते है लेकिन नवरात्रा में यहाँ की रौनक देखते ही बनती है…इस मंदिर में आरती के समय की एक ख़ास बात भी है..यहाँ आरती के समय दो व्यक्ति तलवार लेकर आगे पीछे चलते है या यु कहे की तलवारों के साए में आरती की ज्योत चलती है…पुरे देश से यहाँ भक्त गण अपनी मनो कामनाए ले कर आते है और मनो कामना पुरी होने पर माँ के मंदिर में चुनडी बांधते है..पहाडियों पर स्थित होने के बावजूद भी भक्तो का जोश देखते ही बनाता है ..क्या बूढ़ा और क्या जवान .क्या महिला और क्या पुरुष 1300 फीट की उंचाई पर बने इस मंदिर में माथा टेक कर हर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मानता है ..कुछ सालो पहले तक यहाँ रात्री में नियमित रूप से शेर भी माँ के दर्शनों के लिए आता रहा है..आज भी ऐसे कई भक्त गण मिल जाएंगे जिन्होंने माँ के इस दरबार में शेर को आते हुए देखा है l