नैनीताल – सुयाल तरेडा गाँव के पुरुष और महिलायें गाँव की सड़क के लिए कर रहे हैं श्रमदान

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रिपोर्ट – कान्ता पाल/ नैनीताल – उत्तराखण्ड में नैनीताल से महज 40 किलोमीटर दूर सुयाल तरेडा गाँव के लोग जब सड़क की बाट जोहते थक गए तो इन लोगो ने बीमारों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को नजदीकी मोटर मार्ग तक वाहन से ले जाने के लिए मिलकर श्रमदान कर मार्ग बनाने की ठानी हैं। इस गांव के युवाओं को दूसरे गांव के लोग अपनी लड़कियां सिर्फ इसलिए नहीं देते क्योंकि यहां घने जंगलो और पहाड़ी के उबड़ खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए पैदल ही जाना पड़ता है । पहाड़ों से पलायन का कारण और सच भी यही है ।
उत्तराखण्ड बनने के 18 वर्षों बाद भी आज नैनीताल जिले में रामगढ़ ब्लॉक के नाथुवाखान से सुयाल तरेडा पोखरी गांव पहुंचने के लिए ग्रामीणों को पैदल मार्ग ही इस्तेमाल करना पड़ता है ।इस गाँव में लगभग 65 परिवार रहते है। जो एकमात्र पैदल मार्ग का इस्तेमाल कर बमुश्किल अपने ठिकाने तक पहुंचते हैं । यहां के बच्चों को अच्छे स्कूल नसीब नहीं होते क्योंकि जंगल के बीचों बीच पहाड़ी रास्ता खतरों  भरा है । ऐसे ही किसी बीमार को डोली, चारपाई या कंधों में उठाकर निकटवर्ती मोटर मार्ग तक ले जाया जाता है । गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने में भी भारी दिक्कतो का सामना करना पड़ता है । आज राज्य बनने के 18 वर्ष बाद सरकार की बेरुखी के चलते इनके सब्र का बांध टूट गया और पूरा का पूरा गांव निकल पड़ा है खुद श्रमदान कर सड़क बनाने में । ये महिलाएं अपना चूल्हा चौका पूरा कर सड़क के चौड़ीकरण में लग गई है । यहां के पुरुष कंधों पर सब्बल, फावड़े और बेलचे लेकर आजकल इसी तरह अपना जरूरी काम करने के बाद मार्ग को घर तक लाने में जुट गए हैं ।
यहां के ग्रामीण सरकार से गांव तक मोटर मार्ग निर्माण की मांग कर रहे हैं । उनका कहना ही कि दूसरी समस्याओं के साथ साथ यहां के लोगों को सब्जी और फल खराब होने से बचाने के लिए बाजार तक जल्द पहुंचाना पड़ता है । इसके अलावा भीमताल से जंगलिया गांव से आगे मलुवाताल में जब कोई बिमार पड़ता है तो उसे इस प्रकार 5कि.मी.चढ़ाई में नजदीकी मोटरमार्ग तक ले जाना पड़ता है। इसके अलावा भी कुछ अन्य गांव में इसी तरह से लोगों को कुर्सी में बांधकर या कंधों पर रखकर ले जाया जाता है ।