नैनीताल के स्वामी लीलाशाह ने 60 साल पहले ही आसाराम को आश्रम से निकाल दिया था

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कान्ता पाल/ नैनीताल – दुष्कर्मी आसाराम बापू को नैनीताल के स्वामी लीलाशाह ने भी इन्हीं हरकतों के कारण 60 साल पहले अपने आश्रम से बाहर निकाल दिया था ।  आसाराम स्वामी लीलाशाह के आश्रम में अपनी पत्नी को लेकर उनका शिष्य बनने पहुंचा था लेकिन स्वामी ने उसे गृहस्थ आश्रम वाला कहकर आश्रम से बाहर निकाल दिया था ।
दुनिया के सामने ढोंगी-पाखंडी बाबा के रूप में अब उजागर हुए बलात्कारी आसाराम की पोल नैनीताल में लगभग 60 साल पहले ही खुल गयी थी। उसे यहां के संत लीलाशाह के आश्रम से चारित्रिक दोषों के कारण निकाला गया था। सरोवर नगरी व आसपास के क्षेत्र बाहरी तौर पर पर्यटन तो आत्मिक तौर पर शांति-आध्यात्म देने के लिए मशहूर है । इसी लिये यह नगर नीब करौरी बाबा, हैड़ाखान बाबा, महाअवतार बाबा, हरदा बाबा, पायलट बाबा, स्वामी लीलाशाह व सोमवारी बाबा सहित अनेकानेक बाबाओं की भी तपस्थली रही है।
नगर के इसी आकर्षण में 1964 के आसपास आसाराम (तब आसूमल) भी यहां आया था । सन 1940 में यहां आए गुजरात मूल के संंत स्वामी लीलाशाह के हनुमानगढ़ी मंदिर के समीप 1956 में स्थापित आश्रम में उसने शरण ली थी।  इसी दौरान 1964 में उसने स्वयं को स्वामी जी का शिष्य और स्वामी जी को अपना गुरु घोषित कर दिया। लेकिन सच्चाई यह बताई जाती है कि उसकी संदिग्ध गतिविधियां, शुरू में ही पत्नी के साथ आने और आगे की रसिक मिज़ाजी जल्द ही त्रिलोकदर्शी स्वामी लीलाशाह की नजर में आ गयी थीं । और उसे बहुत जल्द ही आश्रम से निकाला गया था।
स्वामी लीलाशाह के उस समय के सिंधी भक्त भोजू महाराज बताते हैं कि उन्होंने आसाराम की पोल खोल दी जिसपर  आसाराम ने उसको मारने का षड्यंत्र बनाया और गुण्डे भिजवाए थे, हालांकि तब वो किस्मत से बचकर निकल गए थे । उनका चरित्र खराब हो गया था । लीलाशाह ने कहा था तुम्हारी माँ बेटी को कोई बुरी नजर से देखेगा तो कैसा लगेगा, फिर तुम क्यों देखते हो ? इसी लिए उन्होंने कागजी कार्यवाही कर किसी को भी अपना शिष्य नहीं बनाया था । आशाराम के दफे अपनी पत्नी को लेकर पहुंचे थे जब उनकी पत्नी को अंदर आने की अनुमति नहीं मिली थी । महाराज ने उन्हें बोला तुम ग्रहस्थ हो और अब तुम साधु नहीं बन सकते ।
संन 1973 में स्वामी लीलाशाह के देह त्यागने से पहले से आश्रम की जिम्मेदारी संभालने वाले गणेश दत्त भट्ट बताते थे कि आसाराम के हावभाव और तड़क भड़क से व्यथित लीलाशाह ने उसे बहुत बार समझाया लेकिन उनकी बात न मानने पर चार वर्ष बाद उसे आश्रम से निकाल दिया था। आशाराम को अहम हो गया था । वो पहले आश्रम में गीता का पथ पड़ा करता था ।
आश्रम से जुड़े वृद्ध भक्त सुबोध मुनि के अनुसार पहले तो  आसाराम बहुत ध्यान व तपश्या करते थे लेकिन उनके भक्त बढ़ने के बाद वो सांसारिक दुनिया से जुड़ने लगे ।  उसका ध्यान जप तप में कम और मौज मस्ती में ज्यादा रहने लगा था। वह यहां ज्ञान-ध्यान के बजाय अपने कुश्ती के शौक में मशगूल रहता था, और साथियों के साथ घंटों कुश्ती के दांव-पेंच आजमाता था। उन्होंने कहा कि 28 जून 1999 को आसाराम के चेलों ने दुबारा नैनीताल में संकीर्तन यात्रा के दौरान आश्रम पर जबरन कब्जा करने का प्रयास किया था, जिसे बमुश्किल बचाया जा सका था। उन्होंने ये भी कहा कि आशाराम भक्त बनाकर महंत तो बन सकता था लेकिन संत नहीं बन सकता था । उसके हावभाव और चरित्र पर भी हमेशा सवाल उठते रहते थे ।
आज से 55 वर्ष पूर्व ही असलियत जानकर दुष्कर्मी  आसाराम को ना केवल आश्रम से निकाला गया था बल्कि उसके प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था । लेकिन उनके देहांत के बाद आसाराम ने स्वयं को उनका सच्चा शिष्य साबित कर स्वामी जी के लाखों अनुयायियों को जबरन अपना शिष्य बनाने का भरपूर प्रयास किया। आसाराम अक्सर अपने प्रवचनों में स्वामी लीलाशाह का नाम लेकर रोने का नाटक करता था। उसने सद्गुरु की याद में नाम से बनाई गई लघु फिल्मों में लंबा चौड़ा प्रवचन देकर दावा किया है कि स्वामी लीलाशाह उसके गुरु थे। वह उनकी भरपूर सेवा करता था। यह वीडियो यू ट्यूब पर भी जारी किए जाते थे। आश्रम में मौजूद स्वामी लीलाशाह के सभी भक्तों का एकसाथ दावा है कि आशाराम को स्वामी लीलाशाह ने उनकी गंदी हरकतों के कारण कभी अपना शिष्य माना ही नहीं था ।