नन्दलाल /शाहजहाँपुर- अदालतों ने अपना नजरिया बदलना शुरू कर दिया है। ऐसा ही एक नजारा यूपी के शाहजहाँपुर में सामने आया है जहां 23 दिसंबर को किशोर अदालत ने एक अजीबो गरीब फैसला सुनाया है। यहां 22 साल से चल रहे मुकदमे में अदालत ने दोषी को एक अस्पताल की एक महीने तक साफ सफाई करने की सजा दी है। फिलहाल इस सजा को पाने के बाद दोषी पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
अपने परिवार के बीच बैठा सहमा सा ये व्यक्ति हिमांशु है जिसे अपने 22 पहले के मारपीट के मुकदमे में अदालत ने एक अस्पताल की पूरे एक महीने तक साफ सफाई करने की सजा सुनाई है। दरअसल मामला पुवायां थाना क्षेत्र के सतवा बुजुर्ग गांव का है जहां 9 वर्ष की उम्र में दलित बालक को मारे गए थप्पड़ की सजा आज 31 साल के हिमांशु शुक्ल को अस्पताल में सफाई कर्मचारी बनकर चुकानी पड़ रही है। जिस उम्र में बच्चो को सही गलत में ज्यादा फर्क नहीं पता होता उस उम्र में अपने दलित दोस्त को वर्ष 1995 में मारे गए थप्पड़ की गूंज आज भी हिमांशु के जहन में गूँज रही है। पेशे से ड्राइवर हिमांशु जो आजकल पुवायां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सफाई कर्मचारी का कार्य एक सजा के तौर पर निशुल्क कर रहे है ।हिमांशु हमको बताते हे के कैसे वह एक मामूली झगडे में अपने दलित मित्र कल्लू को एक थप्पड़ मरने के बाद घर पर वापस आ गए थे और खाना खाकर रात में सोने की तैयारी कर रहे थे जब अचानक आकर पुलिस उनको उठा कर ले गयी थी । घरवालों के पूछताछ करने पर पता चला कि १९९५ में बसपा सरकार द्वारा चलन में लाये SC/ST एक्ट के तहत उनको बंद किया गया है। हवालात में एक रात बंद रहने के बाद हिमांशु ने घर से बहार निकलना तक बंद कर दिया क्योंकि उनके अंदर पुलिस का असीमित खौफ समा गया था ।उस घटना के बाद हिमांशु ने स्कूल जाना भी छोड़ दिया l
22 साल पहले हिमांशु का गांव के ही एक व्यक्ति से झगड़ा हो गया और मामला किशोर न्यायालय पहुँच गया। हालांकि मुकदमा लिखे जाने के बाद उसे तीन महीने के लिए किशोर जेल भेज दिया गया और उसके बाद उसे जमानत भी मिल गयी। लेकिन अदालत के इस फैसले के बाद हिमांशु को सीएचसी अस्पताल की सफ़ाई तो करनी ही पड़ेगी।लेकिन इस सजा को पाने के बाद अब उसके आगे अपने परिवार के पालन पोषण का एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
सीएचसी प्रभारी डी.आर मनु ने बताया कोर्ट के आदेश पर हिमांशू को एक महीने के लिए सीएचसी में योग्यतानुसार कार्य करने के लिए भेजा है। लेकिन हिमांशु के पास कोई डिग्री न होने के कारण उसे 25 तारीख से एक महीने तक सीएचसी पर सजा काटने के लिए आया। जिसे सीएचसी परिसर में घास काटने और का साफ करने का काम दे दिया गया है।
मारपीट करने की सजा एक महीने तक अस्पताल की साफ़ सफाई करके काटनी होगी। सुनने में भी अजीब लगता है लेकिन शाहजहाँपुर में ये सजा हिमांशु को उसके बचपन की गलती की मिली है। शायद उसने ये नही सोचा होगी कि उसको उसके गुनाह की सजा 22 साल बाद अस्पताल की साफ सफाई करके काटनी पड़ेगी। ऐसे में अब हिमांशु को एक ओर रोजी रोटी का संकट आया है तो वही किशोर अदालत के इस
फैसले भी कोस रहा है।