Karnal :हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियों से लोगों का मोह भंग

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करनाल -हरियाणा में लोकसभा के चुनावों की तारीख 12 मई जैसे जैसे नज़दीक आ रही है ,प्रचार प्रसार में तेजी आ रही है l मौसम की गर्मी और ऊपर से चुनावी गर्मी से नेताओं की जनसभाओं में भीड़ कम होने से नेताओं के ओर ज्यादा पसीने छूट रहे हैं l जिसका कारण व्यवस्था में नेताओं का सिर्फ पांच साल में जनता से मिलना केवल चुनाव के समय ही है l रही बात वोट की तो हर प्रकार से वोटरों को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति अपना वोट डालने जरूर जाए l भले ही इतने प्रचार प्रसार के बाद चार चरण के बाद भी वोट डालने वालों के वोट प्रतिशत में कोई ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हो रही है l माना जाता है कि जितना वोट प्रतिशत कम होगा उतना ही वोट मार्जन कम होगा, तो बाज़ी न जाने किसके हाथ लगे l जिस पर क्षेत्रवाद ,जातिवाद और स्थानीय मुद्दे भी हावी हो सकते हैं l क्योंकि हरियाणा में भी जातिवाद के हिसाब से ही उम्मीदवार का चयन होता है l वैसे तो हरियाणा में अब टक्कर कांग्रेस और बीजेपी में ही नज़र आती है क्योंकि इन्ही पार्टियों के नेता मैदान में खड़े नज़र आ रहे हैं l कहा जा रहा है कि गैर-भाजपा के कम रहे समर्थकों में इस चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह नहीं रहा है। क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य भी हाशिये पर चला गया है जो एक दूसरे में मर्ज होती जा रही हैं या गठबंधन करके मैदान में रहना चाहती हैं l इनके नेताओं को जब अपनी दुकानें बंद होती दिखी तो मुख्य पार्टी में जाने शुरू हो गए हैं l

चुनाव में यदि कोई लहर होती है, तो भारी मतदान भी होता है, जैसा कि 1977 में हुआ था। साल 1971 के आम चुनाव की तुलना में 1977 के चुनाव में पांच फीसदी अधिक मतदाताओं ने वोट डाले थे। इसी तरह, साल 1980 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 1984 के चुनाव में करीब आठ फीसदी अधिक वोटिंग हुई थी। 2014 में ही 2009 की तुलना में आठ फीसदी अधिक वृद्धि देखी गई थी। मगर मौजूदा चुनाव में चार चरणों में ऐसा कुछ नहीं दिखा है। वोटिंग प्रतिशत में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है।

 हरियाणा में बीजेपी दसों सीटों पर अपनी जीत मानकर चल रही है पर जो समीकरण नज़र आ रहे हैं ,कांग्रेस बीजेपी की चार सीटों पर अभी टक्कर नज़र आ रही है l जिसे लेकर बीजेपी भी सतर्क नज़र आने लगी है l नेताओं को घर घर जाकर जनता से सम्पर्क करने के भी निर्देश दिये गए हैं ताकि कोई अनहोनी न हो जाए क्योंकि डूबता भी वही है जो अपने आप को तैराक समझता है l यही कारण था कि बाद में मेयर चुनाव में मुख्यमंत्री को खुद चुनाव की कमान संभालनी पड़ी थी l