गुरुग्राम-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, (उत्तर क्षेत्र) की बैठक में पर्यावरण संरक्षण व वैश्विक महामारी कोरोना के कारण बदलते परिवेश में स्वयंसेवक को ओर अधिक गंभीरता व जिम्मेदारी के साथ कार्य करने का आह्वान किया गया। सेवा के कार्यों को आगे बढ़ाते हुए स्वरोजगार, आत्म निर्भरता और स्वावलम्बन को कार्य का आधार बनाना चाहिए. पानी को पैदा नहीं कर सकते लेकिन बचा सकते हैं, वृक्षों को लगाया जा सकता है, इसलिए अधिकाधिक वृक्षारोपण करने और प्लास्टिक के उपयोग से बचने पर जोर दिया गया.
बैठक में संघकार्य की वर्तमान स्थिति की समीक्षा के साथ आगामी कार्यक्रमों पर विचार किया गया. स्वदेशी, कुटुंप्रबोधन जैसे सामाजिक सरोकार के विषयों पर चिंतन किया गया। उल्लेखनीय है कि स्थानीय सेक्टर 9 के सिधेश्वर स्कूल में संघ की दो दिवसीय बैठक का आयोजन किया गया था। इस बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी व सरकार्यवाह सुरेश जी जोशी, पांच सहसरकार्यवाह (सुरेश सोनी जी, दत्तात्रेय जी होसबले, डॉ कृष्ण गोपाल जी, डॉ मनमोहन जी वैद्य, मुकुंददा जी), चार अखिल भारतीय अधिकारी (इंद्रेश जी, अशोक जी बेरी, रामलाल जी, जे नंदकुमार जी) सहित पांच प्रान्तों के 43 प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कहा कि कोरोना के कारण सामाजिक परिवेश में परिवर्तन आया है। इस बदलते परिवेश में स्वयंसेवकों को अपनी कार्य भूमिका बदलने की आवश्यकता है। बैठक में निर्णय लिया गया कि कोरोना के कारण ऑनलाइन व परिवार शाखाओं को अब अपने पूर्व स्वरूप में आना चाहिए। शाखाओं को कोरोना संबंधी सावधानियों के साथ शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए खुले मैदानों में लगाने की बात की गई. राष्ट्रभक्ति, सेवा, संस्कार की भावना मजबूत करने के लिए साप्ताहिक कुटुंब-बैठकें प्रारम्भ करने का अहवान किया गया. भारत की प्राचीन कुटुम्ब परंपरा में परस्पर स्नेह व सामंजस्य विशेषता रही है।
सरकार्यवाह सुरेश जोशी जी (भैयाजी) के अनुसार पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय की मांग है। उन्होंने कहा कि जब पर्यावरण संरक्षण का विषय आता है तो जल प्रबंधन, जल के दुरुपयोग की रोकथाम, प्लास्टिक उपयोग पर रोक जैसे जागरूक अभियान चलाने होंगे। समाज में अधिक से अधिक वृक्षारोपण की अलख जगानी होगी। सभी प्रान्तों ने अपने यहाँ चल रहे पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों व वृक्षारोपण अभियानों की जानकारी बैठक में दी.
बैठक में स्वदेशी निर्मित समान के उपयोग से भारत को आर्थिक रूप से सशक्त करने की अवधारणा को साकार किया जा सकता है। इसलिए छोटे उद्योग, ग्रमीण कुटीर उद्योग का सहयोग करने की बात कही गई।