ओलम्पिक खेल में तीन-तीन गोल्ड मेडल जीतने वाले ओलंपिक खिलाड़ी को 300 रूपये की पेंशन का सहारा

0
202

नन्द लाल/ शाहजहाँपुर  – रियो ओलम्पिक में मेडल हासिल करने वाले खिलाड़ियों पर सरकारों ने करोड़ो रूपये देने की घोषणा की है लेकिन आज हम आपको दिखाएंगे कि किस तरह ओलम्पिक खेल में तीन-तीन गोल्ड मेडल जीते वाला ओलंपिक खिलाड़ी आज 300 रूपये की पेंशन के सहारे अपनी बदहाल जिन्दगी गुजार रहा है इस ओलंपिक खिलाड़ी को अफसोस है की सरकार और राजनेताओं ने सिर्फ झूठे वादे किए हैं। यूपी के शाहजहांपुर के रहने वाले इस खिलाड़ी का कहना है अगर सरकार उसे एक बार फिर मौका दें तो वह ओलंपिक खेल में भारत को गोल्ड मेडल दिला सकता है। फिल्हाल इस खिलाड़ी को 20 साल के बाद जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं का लाभ देने की बात कर रहा है।
अपने गले में तीन तीन गोल्ड मेडल डालकर अपनी दुखभरी कहानी बयां कर रहे इस शख्स का नाम कौशलेन्द्र सिंह है। एक वक्त था जब इस अन्र्राष्ट्रीय खिलाड़ी ने ओलम्पिक खेल में तीन स्वर्ण पदक हासिल करके देश का नाम रोशन किया था। लेकिन आज महज तीन सौ रूपये पेन्शन के सहारे अपनी जिन्दगी काटने को मजबूर है। कौशलेन्द्र सिंह के बेहतरीन प्रदर्शन के चलते वर्ष 1981 में जापान में हुए अन्तर्राष्ट्रीय पैरा ओलम्पिक के आयोजन में इन्हे जापान के टोक्यों में जाने का मौका मिला। वहां कौशलन्द्र ने ब्हील चेयर रेस की 1500 मीटर और 100 मीटर की रेस समेत तीन प्रतियोगिताओं ने तीन गोल्ड मेडल हासिल करके इतिहास रच दिय। इनकी कामयाबी का सिलसिला यहीं नही रूका। 1982 में हांगकांग में हुए पेसफिक खेलों में इस खिलाड़ी ने एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल किया। दरअसल थाना जलालाबाद के प्रतापनगर में रहने वाले कौशलेन्द्र 14 साल की उम्र में जामुन के पेड़ से गिर गये थे जिससे उनकी रीड़ की हडडी टूट गई थी और उनके कमर के नीचे का हिस्से में पैरालैसिस हो गया था। 16 साल की उम्र में उनकी प्रतिभा को देखकर ही उन्हे जापान में ओलम्पिक खेल में भेजा गया था। वैसे तो उनके इन गोल्ड मेडल्स बेशकीमती है लेकिन आज उनकी अहमियत पहचानने वाला कोई नही है। उन्हे अफसोस है कि महज 300 रूपये की सरकारी पेन्शन के लिए भी उन्हे पूरे बीस साल का वक्त लग गया। उनका कहना है अगर उन्हे मौका दिया जाये तो वो आज भी देश को गोल्ड मेडल जिताने का जज्बा रखते हैं। लेकिन आज वो अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हैं।
कौशलेन्द्र का कहना है कि कई बार नेताओं ने उन्हे तमाम सरकारी मदद दिलाने के कई वादे किये लेकिन आज तक उन्हे सरकारी मदद या किसी योजना का लाभ उन्हे नही मिल पाया। यही बजह है कि आज वो गुमनामी की जिन्दगी जीने को मजबूर है। विकलांगता के चलते उन्होने शादी तक नही की। आज उनका छोड़ा भाई ही उनकी देखभाल करता है। क्योंिक छोटे भाई को इस बात का गर्व है कि उनके भाई ने भारत को तीन तीन गोल्ड मेडल दिलवाकर देश का नाम रोशन किया था।
तीन गोल्ड मेडल, एक कांस्य पदक और रजत पदक विजेता को आज सरकार की तरफ से 3 सौ रूपये महीने की पेशंन पर अपनी जिन्दगी गुजर बसर कर रहा है। हालंाकि अब जिलाधिकारी इस अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी को हर संभव मदद और सरकारी योजनाएं देने की बात कर रहे हैं।
रियो ओलम्पिक में जीत हासिल करने वाले और देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को सरकारे करोड़ों रूपये देने की घोषणा कर चुकी हैं। लेकिन भारत को तीन तीन गोल्ड मेडल देने वाला ये खिलाड़ी मुफलिसी की जिन्दगी जीने को मजबूर है। इस अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी का आज भी दावा है कि इस मुफलिसी के दौर में भी अगर सरकार मौका दे तो एक बार फिर भारत का सिर उंचा कर सकता है। लेकिन आज जरूरत है ऐसे खिलाड़ियों को  सरकार की तरफ से हर संभव मदद देने की ताकि वो भी गर्व से अपना सीना चौड़ा कर जिंदगी जी सकें l