करनाल – काफी इंतजार के बाद हरियाणा में फिल्म पॉलिसी बनी

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करनाल – आखिर कई सालों के इंतजार के बाद हरियाणा फिल्म पॉलिसी बन गई। प्रदेश में कई सरकारें आई, फिल्म पॉलिसी को लेकर हालांकि यहां के कलाकार, कलाप्रेमी, बुद्धिजीवी, साहित्यकार और फिल्म निर्माता इसकी मांग उठाते रहे, लेकिन इस पर वर्तमान सरकार ने ही काम किया और इसका श्रेय संस्कृति व कलाप्रेमी मुख्यमंत्री मनोहर लाल को जाता है।  बीते शुक्रवार को गुरूग्राम में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने फिल्म पॉलिसी की लॉचिंग कर एक और मील का पत्थर स्थापित कर दिया। इसे लेकर चंहुओर इसका स्वागत हो रहा है और इसकी गूंज बॉलीवुड तक पहुंची है। सरकार की सोच है कि हरियाणा फिल्म नीति को ओर व्यापक बनाने के लिए जल्द ही मुम्बई में भी लॉंच किया जाएगा, ताकि वहां रहने वाली फिल्म जगत की तमाम हस्तियों को भी हरियाणा की लोकेशन और अन्य सुविधाओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिल सके।  
 
फिल्म पॉलिसी को लेकर अब अंतरराष्टï्रीय स्तर पर छोटे से इस प्रदेश की ख्याति में और ईजाफा होगा तथा हरियाणवी फिल्मो और यहां के प्रतिभावान युवा कलाकारों का भविष्य समृद्घ बनेगा। इसके साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मो में भी हरियाणा की संस्कृति और यहां के स्थानो की झलक जन-जन तक पहुंचेगी। सरकार का पॉलिसी के सही क्रियान्वन और इसके विकास को लेकर यदि लगातार रूझान बना रहा, तो हरियाणवी कल्चर फिल्मो के माध्यम से आशातीत फले-फूलेगा। हरियाणवी फिल्म पॉलिसी से यहां के युवाओं की ऊर्जा सतत रूप से प्रवाहित होगी और उनकी प्रतिभा का विकास होगा। फिल्म कल्चर्ड ऑडियंस बनेगी। पॉलिसी से फिल्म मैत्री दृष्टिïकोण का विकास होगा, जिससे देश-विदेश के फिल्म निर्माता आकर्षित होंगे। प्रदेश की लोक-कला, संस्कृति, संगीत और परम्पराओं को बढ़ावा मिलेगा। 
 
फिल्मो और लेखन से सरोकार रखने वाले कलाकार और साहित्यकार क्या कहते हैं, फिल्म पॉलिसी को लेकर आईए उस पर एक नजर डालते हैं। रंगकर्मी साहित्यकार व लेखक राजीव रंजन का कहना है कि फिल्म पॉलिसी से खेल के मंच की तरह नए नायकों का उदय होगा और सिनेमा के परदे पर हरियाणा का नाम होगा। रंजन ने कहा कि आज भी हरियाणा की ऑडियंस वर्षों पहले बनी चंद्रावल व लाडो बसंती में यहां के कलाकारों की कालजयी भूमिका को भूले नही हैं, बेशक कॉमर्शियल फिल्मे थी। लेकिन मनोरंजन प्रधान साबित हुई। अब फिल्म पॉलिसी से प्रोत्साहन पाकर हरियाणा की संस्कृति नए रूप में आएगी। सामाजिक विषमताओं, लैंगिक भेद, युवाओं में नशाखोरी और उत्तेजना प्रवति को रोकने के लिए फिल्मे बनेंगी, ऐसी उम्मीद है। ऐसी फिल्मो से विश्व मंच पर हरियाणवी भाषा का ग्लोबलाईजेशन होगा। 
 
 हरियाणा फिल्मो के जाने-माने कलाकार और के.यू.के. में युवा एवं कल्याण विभाग के निदेशक रहे सेवानिवृत्त अनूप लाठर का इस बारे कहना है कि देर से ही सही लेकिन किसी ने इस ओर अपनी इच्छा बनाकर उसको मूर्त रूप दिया। लाठर का ईशारा मुख्यमंत्री मनोहर लाल की तरफ है। उन्होने पॉलिसी को लेकर हरियाणा के कलाकार को खुशनसीबी करार देते हुए कहा कि अब देखना यह है कि कितनी ईमानदारी से इसे आगे तक ले जाया जाएगा। मूलत: उन्होने इसे सरकार का एक सराहनीय कदम बताया और कहा कि इससे उभरते हुए कलाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा। हरियाणवी संस्कृति को तो बढ़ावा मिलेगा ही, साथ-साथ प्रदेश में रोजगार के अवसर भी बढेंगे। 
 
जाने-माने रंगकर्मी एवं फिल्मी कलाकार संजीव लखनपाल ने कहा कि हरियाणा फिल्म पॉलिसी से स्थानीय कलाकारों को सहयोग मिलेगा। हरियाणवी कल्चर सुरक्षित और संरक्षित होगा और प्रदेश आगे बढ़ेगा। लखनपाल ने उम्मीद जाहिर की कहा कि प्रदेश में कला के विकास को लेकर जो लोग वर्षों से संघर्षशील हैं, उनको अवश्य प्रोत्साहन मिलना चाहिए। पॉलिसी का भविष्य कैसा रहेगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन यह स्वागत योग्य है। नि:स्देह हरियाणवी कल्चर को अब नई दिशा मिलेगी और नया स्कोप पैदा होगा। पॉलिसी के पैरोकारों से लखनपाल का कहना है कि भविष्य में बनने वाली हरियाणवी फिल्मो को सरकार की ओर से उचित प्रोत्साहन मिलना चाहिए। थिएटर हो या मल्टीप्लैक्स, हरियाणवी फिल्मो के शो उनमें जरूर हों। इस तरह का खास प्रावधान पॉलिसी में जरूर जोडऩा चाहिए। 
 
शहर के डी.ए.वी. स्नातकोत्तर के प्राचार्य आर.पी. सैनी का पॉलिसी के बारे कहना है कि हरियाणवी संस्कृति का कोई सानी नही है। सांग इस प्रदेश की एक प्राचीन विधा रही है, जो जन मानस के दिलो-दिमाग पर जादूई असर रखते थे। हालांकि आज लखमीचंद, मांगेराम, चंद्रबेदी जैसे बड़े-बड़े सांगी हमारे बीच में नही हैं, लेकिन कम पड़े-लिखे होने के बावजूद भी उनकी लेखनी और से जो कुछ निकला उसकी तुलना कई साहित्यकारो ने शेक्सपीयर से की है। यदि पॉलिसी वर्षो पहले बन जाती तो, हमारी युवा पीढ़ी को हरियाणवी कलाकारों द्वारा रचित कथाओं और राग-रागनियों के महत्व और गहराईयों को समझने का अवसर मिलता। फिर भी प्राचार्य ने सरकार के इस कदम को अति सराहनीय बताया और कहा कि इससे हमारे कलाकार तो प्रोत्साहित होंगे ही, यहां दूसरी भाषाओं की फिल्मे भी बन सकेंगी, जिससे संस्कृति का आदान-प्रादान होगा।