करनाल – भा.कृ.अनु.प.भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा गाँव रसीना जिला कैथल में विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डाॅ. ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने 25 गाँवों से आए पुरूष एवं महिला किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि फसलों से अधिक उत्पादन लेने हेतु किस्मों व तकनीकों के अलावा मृदा स्वास्थ्य का भी बहुत अधिक महत्व है। भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने एवं लगातार अधिक पैदावार लेने तथा उर्वरकों का खर्च कम करने के लिए मिट्टी की समय पर जाँच करवाते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सन् 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ के आस पास होगी, इसलिए उत्पादकता बढ़ाना बेहद जरूरी है। उन्होंने वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि वे किसानों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करें तथा किसानों को वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने की सलाह दी l
इस अवसर पर निदेशक महोदय ने किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी वितरित किए। उन्होने संरक्षित खेती को बढ़ावा देने हेतु किए गए कार्यों के लिए किसान महिन्द्र सिंह, अमरीक सिंह, राजेश कुमार व लक्ष्मी आनन्द की तारीफ की तथा सभी किसानों से अनुरोध किया कि वे भी इन प्रगतिशील किसानों के पद-चिन्हों पर चलकर अपने मृदा स्वास्थ्य का सुधार करने का प्रयास करें। उन्होने पौधों के विकास के लिए आवश्यक सभी 16 पोषक तत्वों के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला। सघन खेती करने से भूमि में विभिन्न पोषक तत्वों की कमी आई है और इन सभी की उपलब्ध मात्रा की जानकारी सिर्फ मृदा की जाँच से ही पता चल सकती है। इस अवसर पर डाॅ. आर.के. शर्मा ने धान-गेहूँ फसल-चक्र के बीच में मूंग की फसल लेने पर जोर दिया तथा ढैंचे से हरी खाद तथा गोबर की खाद के प्रयोग पर जोर दिया। डाॅ. रवीश चतरथ ने गेहूँ की विभिन्न किस्मों तथा डाॅ. डी.पी. सिंह ने रोगों के निदान के बारे में विस्तार से बताया। डाॅ. आर.के. गुप्ता ने किसानों को गेहूँ की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी। डाॅ. अजित सिंह खरब ने जौ फसल प्रबंधन एवं जौ के गुणों से किसानों को अवगत कराया। उन्होंने कहा की बढ़ती बिमारियों जैसे रक्तचाप, मधुमेह व दिल की बिमारी में जौ बहुत उपयोगी है। डाॅ. सुभाष चन्द्र गिल ने किसानों को मृदा स्वास्थ्य की जाँच के लिए मृदा के नमूने लेने का तरीका बताया। डाॅ. अनिल खिप्पल ने किसानों से आह्वान किया कि वे संरक्षित खेती को अपनाएं व अपने खेतों में पराली को न जलाएं बल्कि हैप्पी सीडर से बिजाई करें। उन्होने बताया की हम प्रतिवर्ष 196 लाख टन पराली को जला देते हैं। लेकिन अगर इस पराली को न जलाएं तो हमारी भूमि को 38.5 लाख टन जैविक कार्बन, 59000 टन नत्रजन, 2000 टन फास्फोरस व 34000 टन पोटाश की प्राप्ति होगी। डाॅ. राजेन्द्र सिंह छोकर ने खरपतवार नियंत्रण के बारे में विस्तार से बताया। डाॅ. सत्यवीर सिंह ने मंच का संचालन सुचारू रूप से किया, अतिथियों का स्वागत किया एवं संस्थान की विस्तार गतिविधियों के बारे में किसानों को अवगत कराया। इस कार्यक्रम के आयोजन में डाॅ. लोकेन्द्र कुमार ने भी सराहनीय योगदान दिया। डाॅ. अनिल खिप्पल ने सभी का धन्यवाद किया।