कहाँ है ! कहाँ है कहाँ है! बेबाक, निर्भीक, उसूलों की पत्रकारिता

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करनाल में मै पहली मर्तबा पत्रकारिता का स्वरूप देख रहा हू। मैंने गाँधी जी को सुना । हरियाणा में 23 साल की यात्रा में  पत्रकारिता का इतना गिरता स्वरूप नहीं देखा। मैंने इस यात्रा को 35 साल पहले उस समय शुरू किया जब इस व्यवसाय का स्वर्ण काल था। पत्रकार का समाज में सम्मान था। मुख्यमंत्री खुद इंतजार करते थे। राष्ट्रपति प्रधान मंत्री पत्रकारिता का दिल से सम्मान करते थे। उस समय न तो हाथ में मोबाइल था न ही लेप टॉप। न ही महंगी गाड़िया थी। न ही महंगे चश्मे। न ही करोडो की टी आर पी। पत्रकार था खद्दर धारी,, पैर में टायर की चप्पल कंधे पर झोला। हाथ मे डायरी । साइकिल पर चलने वाला प्रधान मंत्री को चुनौती देने वाला था। नई मिलेनियम मे भौतिक वाद ने पत्रकारिता को निगल लिया। पैदा हुआ मोबाइल  लैपटॉप पर काम करने वाला महंगी गाड़ियों में लाखों टी आर पी पर सवार पत्रकार। मिशन से कब प्रोफेशन मे बदल गई। मानदेय पाने वाला वैतनिक कर्मचारी बन गया। कहीं पर आपने पत्रकार को देखा है। आज तो केवल कर्मचारी ही रह गया है। आज पत्रकारिता  को बाजार की तवायफ बना कर रख दिया है। हाथ मै आई डी लेकर हर आदमी पत्रकार बन गया। पत्रकारों की भीड़ में पत्रकार खो गया। आज हम ईमानदार दबंग प्रतिष्ठित, उसूलों वाली पत्रकारिता की मजार पर मर्शिया पड़ रहे है। आज आर के करंजिया, नौटियाल, चौबे जी, प्रभाष जोशी, अज्ञेय, अरुण शौरी, माणिक चंद वाजपाई, प्रभात झा, वी एस देसाई, महेश श्रीवास्तव , बलदेव भाई शर्मा हरिओम गाँधी, आर डी साप्रा जैसे पत्रकार  और उनकी कलम याद आती है। आज समय और भौतिकवाद ने कलम छीन ली। दे दी लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल, और आई डी, भले ही देदी। लेकिन कलम छीन ली। आज के पत्रकार के हाथ मे सब कुछ है लेकिन बैक बोन नहीं है। इससे बड़ी दुर्गति क्या होगी कि अपने हाथो से अपनी नाक काट रहा है। पत्रकार खुद किंग बनने का ख्वाब देख रहा है। किंगमेकर आज जोकर बन रह गया है। आज टी आर पी, फॉलोइंग लाइक की दौड़ में किंग तो बन गया है लेकिन समाज का नायक, सरकार को कदमों में झुकाने वाला ईमानदार समाज को बदलने वाला अफसरों को योग्यता और सादगी के बल पर झुकाने वाला पत्रकार नहीं रहा है। पैसा तो शरीर बेच कर कमा सकते हो साहेब लेकिन प्रतिष्ठा, तो नैतिकता, मूल्यों, मर्यादा के साथ तपस्या के बाद मिलती है। आज गुरु दत्त की लाइन याद आती है।

यह पेशे की बदनाम गलियां
दोहरे जीवन को जीती हस्तियां,
आईडी के दम पर धमकाती ये गलिया
बाजार में टी आर पी पे बिकती दुनिया
बाजार मे मुजरा करती यह दुनिया
कहा है कहां है कहाँ है पत्रकारों की दुनिया
मुझे गर्व है हिंद की कलम पर
कहाँ है कहाँ है कहाँ है
आपस मे सिर टकराते ये योद्धा
चांदी के टुकड़ों पर बिकते ये नायक
कहाँ है कहाँ है कहां है।

शैलेंद्र जैन
करनाल
#शैलेंद्रjainkarnal@#nirbheek