कुल्लू के सैंज मेले में दिखी देव संस्कृति की झलक

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कौशल/सैंज – जिला स्तरीय देवता लक्ष्मीनरायाण सैंज मेला जहां देवता लक्ष्मी नरायण का इतिहास है वहीं देवता अपने देवलाय रैला गांव से पूरे लाव-लशकरे के साथ मेला मैदान पहुंचे तो देवता ने पहले देवी आशापुरी
की अगुआई में तथा अपने अंग संग चलने वाले देवताओं खोडू, बंनशीरा वीर देवताओं के गूर को देव खेल में प्रचलित कर देव कार्य विधी के साथ मेले मैदान पर स्थित अपने मंदिर व स्थान के चारों ओर परिक्रमा कर मेले का शुभारंभ किया और मेले में शिरकत करने आए घाटी के अन्य देवी-देवताओं के साथ मिलन किया। इतिहास के अनुसार यह मैदान देवता ने राजा से जीत कर इस पर कब्जा किया। वहीं मेला शुरू से देवता लक्ष्मी नरायाण को समर्पित है और मेला भी देवता आगमन के बाद ही शुरू होता है। वेसे यहां कनौन के ब्रहमा व देवी भगवती व देवगढ़ गोही की देवी कमला माता का स्थान भी है और वर्षों से सैंज मेले में पधारते है। वहीं बनोगी देहुरी की माता दुर्गा का भी सैंज मेले में इतिहास है लेकिन सैंज मेले को सरकार की ओर से जिला स्तर दर्जा मिला है और सैंज घाटी को मिनी दशहरा कहलाए जाना वाले मेले की शोभा बढ़ाने के लिए मेला कमेटी ने घाटी के अन्य देवताओं को भी निमंत्रण दिया और इस वर्ष सैंज मेले में देवता लक्ष्मी नरायण सहित घाटी के 6 देवी-देवताओं ने भाग लिया। मेले में जहां घाटी के लोग खूब खरीददारी करते हैं, वहीं इस मेले में देव संस्कृति की झलक देखने को मिली और मेले में आए देवता के संग हरियान देवताओं के समक्ष यहां की परंपारिक वेशभूषा चोला, टोपा व कलगी पहन कर सामुहिक कुल्वी नाटी लगा कर यहां की संस्कृति को जिंदा रखा। हालाकिं मेला कमेटी हर वर्ष रात्रि सांस्कृतिक संध्या का आयोजन करते हंै लेकिन दैनिक देवताओं के समक्ष लगने वाली कुल्वी नाटी का नजारा अपने आप में अलग है ।