पानीपत – आधुनिक युग की मार झेलने को मजबूर है समालखा की गुड़मंडी

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सुमित / पानीपत – पानीपत जिले का समालखा कस्बा किसी जमाने में गुड़ व् खांड़सारी की मंडी के लिए प्रशिद्ध होता था इस कस्बे में लगभग सभी गाँवों में गुड़ व् शक़्कर बनाने के छोटे छोटे  कोहलू व् कलेसर होते थे लेकिन आधुनिकता के दौर में समय के साथ साथ पुराने ढंग से गुड़ व् शक़्कर बनाने की कला लुप्त हो गई और इस पेशे में भी आधुनिक मशीनों ने स्थान ले लिया और यूपी व् यमुना के साथ लगती समालखा मंडी भी अपना गुड़मंडी होने का गौरव खो बैठी। लेकिन समय एक बार फिर करवट ली और मशीनी युग से लोगो शरीर में खानपान की वजह से बढ़े केमिकल के दुष्प्रभाव के कारण लोगों का ध्यान किसानो द्वारा आर्गेनिक तरिके से की जाने वाली खेती से हुई पैदावार की तरफ गया। आर्गेनिक खेती से हुई पैदावार की तरफ बढ़ता लोगो का रुझान व् उससे होने वाली आमदनी ने किसानो को अपनी और आकर्षित किया और ताजपुर गाँव के आर्मी से रिटायर्ड सैनिक ने इसकी पहल करते हुए आर्गेनिक ढंग से ली गई गन्ने की पैदावार से आर्गेनिक गुड़, शक़्कर व् देशी खांड बनाकर हल्के के आसपास के गाँवों में कोतुहल पैदा कर जिले का नाम रोशन कर रहा है और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना पूरा कर रहा है जिनके द्वारा किसानो की आय दोगुना करने के लिए किसानो को नए तरीके सुझाकर प्रेरित किया जा रहा हे।

आर्मी से रिटायर्ड एक सेना का जवान पानीपत के ताजपुर गाँव में आर्गेनिक खाद से खेती बाड़ी करके पुरे हरियाणा के लिए एक मिसाल बन चुका है। आर्गेनिक खाद से उगे गन्ने से घुड़ शक़्कर व् खांड़सारी यानि देसी  खांड बनाने के लिए एक कलेसर लगाया गया हे जिसके गुड़ का स्वाद चखने के लिए आसपास के गाँव के रोजाना काफी तादाद में लोग यहां कलेसर पर पहुंचते हैं व् दूसरे किसान भी उनकी इस पहल को देखकर प्रेरणा ले रहे है। आर्मी में सेवाएं देने के बाद ताजपुर गांव के किसान महल सिंह अब आॅर्गेनिक खाद से फसल उगा रहे हैं। वे बिना मसाले का गुड़, शक्कर व देसी खांड तैयार करते हैं। इसको खाने के शौकीन किसान के खेत में लगे कलेसर पर ही पहुंच जाते हैं। 56 वर्षीय फौजी महल सिंह ने बताया कि आज के समय में अधिकतर किसान रासायनिक खाद से खेती कर सब्जियों व अन्य फसलों का रिकाॅर्ड उत्पादन कर मुनाफा कमा कर एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ लगा रहे है , लेकिन इससे धरती बंजर हो रही है। आर्गेनिक किसान ने बताया की उसने करीब चार साल पहले अपनी 22 एकड़ जमीन में आॅर्गेनिक खाद का प्रयोग शुरू किया था। किसान के मुताबिक चार साल पहले उन्हें पूर्व वैज्ञानिक के व्याख्यान सीडी देखकर जैविक खेती के तौर तरीकों की जानकारी मिली। इसके बाद बड़े भाई के साथ मिलकर अपनी 22 एकड़ जमीन में जैविक खाद का प्रयोग करने लगे। अब वे आसपास के किसानों को जैविक खाद से तैयार फसल के फायदे बताते हैं और आसपास के किसानो को इसके लिए कृषि अधिकारियों से संपर्क रखने के लिए प्रेरित करते है ऐसा नहीं है की वह आर्गेनिक खेती की पैदावार से दूसरे किसानो से कम पैदावार लेते हे बल्कि दूसरे किसानो के बराबर पैदावार लेकर ज्यादा मुनाफ़ा कमाते है। 40 रूपये किलो बिकने वाला गुड़ आर्गेनिक रूप से तैयार कर 60 रूपये किलो बिकता हे जिसकी हम डिमांड भी पूरी नहीं कर पाते क्योकि जैसे जैसे लोगो को पता चलता जाता हे उसी तरह से डिमांड बढ़ती चली जा रही है।

महलसिंह ने बताया कि मैट्रिक पास करने के बाद वे आर्मी में लगे थे। 11 साल बाद 1998 में सेवानिवृत्त हो गए। वे बचपन से ही गुड़ खाने का शौकीन हैं। एक बार गुड़ में कीड़ा निकल आया। उसके बाद अपना गुड़ तैयार करने का विचार आया क्योकि पहले से ही यह इलाका गुड़  बनाने के लिए मशहूर रहा था तो उन्होंने आसानी से सब कुछ जुटा कर यह काम शुरू कर दिया और अपने ही खेतों में देशी खादों का प्रयोग कर उगाये गन्ने की फसल से आर्गेनिक विधि से गुड़ तैयार कर आसपास के गाँवों व् इलाके में अलग पहचान स्थापित की। उन्होंने अपनी आगामी योजना के बारे में भी बताया की वह आॅर्गेनिक खाद से घीया, भिंडी, खीरा, पेठा, करेला समेत अन्य सब्जियां भी  उगाएंगे उन्होंने बताया उनके बड़े भाई भी उनके साथ कंधा से कधा मिलाकर खेतो में काम करते हैं।