शांति,सद्भावना एवं मानव कल्याण को समर्पित है गीता – रमेश कौशिक

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करनाल –  जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव में दूसरे दिन जिला प्रशासन की ओर से गीता का सार विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया,जिसमें सोनीपत के सांसद रमेश कौशिक ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की तथा दीपशिखा प्रज्जवलित कर विधिवत रूप से सेमिनार का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर सांसद रमेश कौशिक ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्रीमद भगवद गीता केवल एक धार्मिक पुस्तक नही,  यह भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकला ऐसा दिव्य मूल मंत्र है, जो जीवन को कर्म से निरंतर जोडता है। गीता से हमें कर्म करने का संदेश मिलता है। मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए फल की इच्छा नही करनी चाहिए। गीता शांति,सद्भावना एवं मानव क ल्याण को समर्पित है। उन्होंने कहा कि जीवन एक संग्राम है,इसमें प्रत्येक दिन संघर्ष करना पड़ता है। समस्या के समाधान के लिए गीता ज्ञान जरूरी है,क्योंकि गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। उन्होंने कहा कि गीता की महत्वता को मध्यनजर रखते हुए सरकार द्वारा स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज के सहयोग से इस अवसर गीता जयंती को अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के रूप में कुरूक्षेत्र में मनाया जा रहा है। जिसका उदघाटन देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था। इतना ही नही हरियाणा सरकार द्वारा हर जिला मुख्यालय पर गीता जयंती महोत्सव मनाया जा रहा है।
सेमिनार में गीता ज्ञान को जानने वाले प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा अपना वकतव्य रखा गया। सेमिनार के पहले वक्ता  पुरूषोतम दत्त वशिष्ठ ने कहा कि गीता अच्छे विचारों का पुप्प गुच्छ है जिससे हमें अंहकार, लोभ, भय त्याग कर कर्म की राह पर आगे बढऩे का संदेश मिलता है। उन्होंने कहा कि गीता में मनुष्य को दुर्बल व कायर ना मानकर एक ऐसा प्राणी बताया गया है जिसमें बहुत-सी शक्तियां विद्यमान हैं, इन सब शक्तियों का प्रयोग करते हुए मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं बन सकता है। इसी प्रकार दूसरे वक्ता राजेन्द्र शर्मा ने गीता के सार से कर्म करने की भावना को जागृत करते हुए कहा कि मनुष्य को ऐसे कर्म करने चाहिए कि मृत्यु के समय मनुष्य को हर्ष का भाव हो। उन्होंने संस्कृत भाषा में गीता के कई श्लोकों  का उच्चारण करते हुए उनका अर्थ स्पष्ट किया और कहा कि सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथो से गीता के ही संदेश मिलते हैं।
तीसरी वक्ता राधेश्याम शर्मा ने कहा कि प्रतिदिन गीता हमें कुछ ना कुछ अवश्य सिखाती है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण को गुरू के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसने अर्जुन रूपी शिष्य के मन में उठने वाले हर संशय को दूर करने का काम किया है और दूसरी ओर अर्जुन ने भी एक अच्छे शिष्य का परिचय देते हुए गुरू के बताए मार्ग पर चलने का प्रण किया है।  आज के समय में शिक्षक और शिष्य दोनों को ही गीता से प्रेरणा लेते हुए शिक्षा के अर्थ को सार्थक करना चाहिए।
सेमिनार में चौथे वक्ता डा0 अवतार सिंह ने कहा कि गीता हमें विपरित परिस्थितियों में भी जीवन जीने की कला सिखाती है और समय को अपने अनुकू ल बनाने के लिए प्रेरित करती है। गीता हमें लाभ-हानि व सुख-दुख की व्यर्थ व्यथा को छोडक़र कर्म की राह पर आगे बढऩे की प्रेरणा देती है। इसी प्रकार आखिरी वक्ता महाबीर शास्त्री ने कहा कि गीता हमें मानवता के साथ-साथ ज्ञानयोगी, कर्मयोगी व भक्ति योगी बनने का संदेश देती है। गीता सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की भांति रहने के लिए प्रेरित करती है।