नैनीताल – चिकित्सा में जोंक उपयोगी ,लेकिन कम हो गयी

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रिपोर्ट -कांता पाल / नैनीताल -पहाड़ी क्षेत्रों में बरसात के मौसम में पाई जाने वाले जोंक जिसे हिरूडिनेरिया नाम से जाना जाता है। हृदय रोग, गैंगरीन के उपचार के साथ कई प्रकार की प्लास्टिक सर्जरी जैसी शल्य चिकित्साओं के लिए उपयोगी साबित होने वाली जोंके अब कम हो गयी हैं। जोंकों के उजड़ने प्रमुख कारण वाहनों से होने वाला प्रदूषण माना जा रहा है।

पर्यावरणविद विनोद पांडे बताते है पहाड़ में बरसात के दौरान जंगलों और पैदल मार्गों पर जोंकों से सामना होना आम बात होती थी। लेकिन बदलते समय में प्रदूषण के कारण जोंके बहुत कम हो गई है। जोंके जानवरों और इंसानो के शरीर मे चिपककर खून चुसती है। हीरुडीन’ के इस रसायनिक गुण के कारण जोंक का प्राचीन काल से उपयोग होता आया है। जोंक शरीर मे खून चूसते समय लार शरीर के खून में डाल देती है जिससे खून का थक्का बनने की प्रवृत्ति थीमी पड़ जाती है। धमनियों और हृदय रोगों के साथ साथ गैंगरीन के उपचार में इसका उपयोग लाभकारी माना गया है। ‘हिरूडिन’ में थक्का बनाने के लिए जरुरी एंजाइम थ्रोबिंन को निष्क्रिय करने की क्षमता है। आज ‘हिरूडिन’ की अत्यधिक माँग होने के कारण यीस्ट व जीवाणुओं की सहायता से इसके प्रयोगशाला में कई रीकंबिनेंट या समान गुण वाले रसायन बनाये जाने लगे हैं।