उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने धर्म की आजादी पर कानून बनाने की उम्मीद जताई

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कान्तापाल / नैनीताल – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आज अंतर धार्मिक विवाह के एक मामले में लड़की को माता पिता के घर भेजने का फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार से धर्म की आजादी पर कानून बनाने की उम्मीद जताई है । न्यायालय ने कहा कि ऐसे कई मामले कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हुए है जिसमे अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए लोग धर्म परिवर्तन का ढोंग रचते हैं । न्यायालय ने इस प्रवृति पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार को विवाह के लिए धर्म परिवर्तन रोकने को धार्मिक बनाने के लिए कहा है। कोर्ट की एकलपीठ ने रुद्रपुर निवासी पिता गिरीश कुमार शर्मा की याचिका पर फैसला सुनाया ।

इससे पहले भी न्यायालय ने पीड़ित लड़की को एस.एस.पी.के साथ पुलिस सुरक्षा में न्यायालय में उपस्थित होने को कहा था । मामले के अनुसार रुद्रपुर निवासी गिरीश कुमार शर्मा ने 21 सितंबर 2017 को रुद्रपुर पुलिस स्टेशन में एफ.आई.आर.दर्ज कराते हुए कहा था की उनकी पुत्री 18 सितंबर को घर से दुकान में सामान लेने गई थी । जब बेटी एक बजे तक नहीं लौटी तो दादी ने फोन पर माँ को बताया और फिर सभी ने रिश्तेदारी में बेटी की तलाश की लेकिन कोई पता नहीं चला । जिसके बाद पिता ने रुद्रपुर ने थाने में  एफ.आई.आर. दर्ज कर बेटी को ढूंढने की गुहार लगाई । पिता गुहार लेकर 3 नवंबर को उच्च न्यायालय पहुंचे जहां उन्होंने आदिल हुसैन अंसारी पर अपहरण का आरोप लगाते हुए पुलिस से बेटी को बरामद करवाने की मांग की । न्यायालय के दबाव पर पुलिस ने 14 नवंबर को युवती को बरामद कर कोर्ट में पेश किया और तभी युवती के साथ आदिल हुसैन अंसारी भी धर्म परिवर्तन करा अतुल शर्मा बन पहुंच गया । उसने कोर्ट को बताया कि वो हिन्दू धर्म ग्रहण कर चुका है और दोनों  ने आर्य समाज में शादी कर ली है । ललित शर्मा, अधिवक्ता याचिकाकर्ता ने बताया कि न्यायालय ने जब युवती से पूछा तो उसने माता पिता के साथ रहने की इच्छा जताई । आज न्यायालय ने युवती को उसके माता पिता के घर भेजते हुए शादी को असंवैधानिक करार देते हुए याचिका को निस्तारित कर दिया है ।