नारी शक्ति को सलाम, बड़े ही खतरनाक काम को अंजाम दे रही पिछले 20 सालो से

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किशोर /अजमेर – ” तोप “शब्द जिसका इतिहास गवाह रहा है जिसको सुनते ही दिल में दहशत और इंसानियत के अंत का मंजर आँखों के सामने रोंद जाता है तोप “जो किसी भी राजा की जीत या हार निश्चित करने में अहम भूमिका निभाती थी ! लेकिन आज काफी सदिया बीत चुकी है  और अब पुराने हो चुके है तोप से जुड़े किस्से। राजस्थान के खुबसूरत शहरों में एक शहर ख्वाजा गरीब नवाज की नगरी “अजमेर” जहाँ तोप का वो नायाब रूप देखने को आज भी हमें मिलता है जो किसी भी जंग का एलान नहीं करता और किसी भी राजा की हार और जीत निशचित नहीं करता वो रूप अपने ख़ास अंदाज से अमन और शांति के साथ किसी भी मुबारक मौके की इतला देता है ! दुनिया में अपनी अनोखी खूबसूरती और अनोखी रीती -रिवाजो के लिए मशहूर राजस्थान जिसकी प्रख्यात कला एवं संस्कृति यहाँ आने वालो के दिलो में एक अनूठी छाप छोडती है यहाँ धर्म भी उसकी ख़ास खुशबुओ से महकते है ! 

अजमेर,राजस्थान के प्रसिद्ध शहरों में से एक ऐसा शहर जो अपनी रूहानियत के लिए दुनिया भर में मशहूर है अजमेर जिस पर ख़ास करम है ख्वाजा मोइनुदिन चिश्ती का पुरे अजमेर शहर में हम उनकी मोजूदगी महसूस कर सकते है ख्वाजा मोइनुदिन चिश्ती जिन्हें हम गरीब नवाज के नाम से भी जानते है यह अजमेर में पिछले 800 सालो से रूहानियत शांति राहत और प्रेम के प्रतिक रहे है एक प्रकाश स्तम्भ की तरह इन्होने पीडी दर पीडी लोगो को इंसानियत और सच्चाई का रास्ता दिखाया है शहंशाओ और बादशाओ ने आम इंसानों की तरह इस महान सूफी संत के दर पर अपना सर जुखाया अनगिनत लोग वो आदमी हो या औरत जवान या बुढा इस देश का हो या विदेश का किसी भी धर्म या जाती का हो यहाँ आकर ख्वाजा जी के दर्शन की खुशनसीबी प्राप्त करते है अनेकता में एकता की सच्चाई हम यहाँ अपनी आँखों से देख सकते है गरीब नवाज के खिदमतदारी यहाँ आने वाला हर आदमी चाहता है मगर ख्वाजा का यह करम कुछ ही बन्दों को नसीब है और वो ख्वाजा के बक्शे इस काम को पीडी दर पीडी बखूबी निभा रहे है 

उन्ही परिवारों में से एक परिवार है मोहम्मद हनीफ का जिन्हें गरीब नवाज ने वो काम सौंपा है जिसकी ख्वाहिश शायद हर मुसलमान को होती है यु तो हर मुबारक मौका पर्वतदिगार बकस्ता है मगर अपने ख़ास अंदाज में मोहम्मद हनीफ का परिवार वो मुबारक मौका बतौर सौगात श्र्दालुओ के सामने रखते है और उनके इस अनोखे अंदाज से हमें तोप का वो नायाब रूप देखने को मिलता है जो दुनिया की नजरो से अब तक छुपा हुआ था अजमेर भारत का अकेला शहर है जहाँ कोई भी मुस्लिम रस्मो -रिवाज और उर्स तोप की आवाज सुने बिना शुरू नहीं होते दरगाह से चलाई जाने वाली तोप को खुद बादशाह अकबर ने बतौर तोफा दरगाह को दिया था 1947 से पहले यहाँ पहिये वाली तोप चलती थी मगर 1947 के बाद से ही यही तोप बखूबी अपना फर्ज अदा कर रही है ! पहले यह आदमी द्वारा चलाई जाती थी लेकिन अब इस रिवायत को तोड़ते हुए इसे अब एक लड़की चला रही है यहाँ तोप बड़े पीर शाहब की पहाड़ी के रास्ते में ग़दर शाह के इलाके से चलती है जिसकी आवाज मिलो तक सुनी जा सकती है सदियों से चली आ रही इस परम्परा को ग़दर शाह बंदु शाह के वंशज मुन्ना भाई उर्फ़ हनीफ खान 12 साल पहले तक खुद चलाते थे

मेरी उम्र कोई 13 या 14 साल की ही होगी तब मैंने अपने वालिद के साथ -साथ इस काम को सिख लिया तोप दरगाह शरीफ से यहाँ लाना थाने से फिर वापिस वह पर जमा कराना यह काम में करता रहा में चलाता रहा जुम्मे की नमाज में या ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में जो भी कार्यक्रम होते है उसमे यह चलाई जाती है जुम्मे में इसे 4 बार चलाई जाती है और रमजान शरीफ में रोज एक रोजे इफ्तार के वक्त चलाई जाती है एक रात को 3 बजे चलती है लोगो को उठाने के लिए चलती है और दूसरी सुबह 4.30 बजे चलती है हमारे वालिद के इंतकाल के बाद हमारी बच्ची फोजिया खान यह लड़की ही इस काम को अब अंजाम देती है

पिछले 20 सालो से यह खुशनसीबी उनकी बेटी फोजिया संभाल रही है 12 साल की नाजुक उम्र में मेने पहली बार डरते हुए तोप चलायी और उसके बाद से आज तक सारे मुबारक मौके उसी की चलायी गयी तोप से मनाये जा रहे है

यह काम तो हमारे अकबर बादशाह के समय से चला आ रहा है पीडी दर पीडी यह खिदमत का काम चला आ रहा है मैंने अपनी पूरी जिंदगी गरीब नवाज के नाम लिख दी है पूरी जिंदगी जब तक जिन्दा हूँ उनकी खिदमत करती रहूँगी उसके बाद मेरे परिवार में जो छोटे बच्चे बड़े हो रहे है वो इस काम को अंजाम देते चले आयंगे !

कई सालो पहले कुछ तंग नजर सोच वाले लोगो का यह मानना था की सूफी जगह पर औरतो को नहीं जाना चाहिये लेकिन यहाँ एक औरत ही सब मुबारक मौको का आगाज करती है यहाँ गरीब नवाज की दरगाह में औरतो को पूरी तरह से छुट है कही भी जाने की कही भी बैठ का इबादत करने की ऐसे समाज में जहाँ हमेशा से ही मर्दों का दबदबा रहा है वहां औरतो को अपनी जगह बनाने के लिए हमेशा से ही संघर्ष करना पड़ा है वहां फोजिया का अपनी इस खानदानी रिवायत को आगे बढाने का फैसला काबिले तारीफ है शायद यह नए युग की एक शुरुआत है