रिपोर्ट –प्रवीण भरद्वाज /पानीपत – ऐतिहासिक एवं औद्योगिक नगरी पानीपत सरकार को सालाना रिवेन्यू के रूप में कई हजार रूपए टैक्स के रूप में देने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है l शहरवासी लगातार प्रदूषण और
फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकलयुक्त पानी के बीच जिंदगी जीने को मजबूर हैं l सड़को पर खड़े गंदे पानी से बीमारियां फैलने का डर बना हुआ है l इस मामले में सरकार व् प्रशासन फेल नज़र आ रहा है l प्रदूषण कंट्रोल विभाग भी आश्वासन तक सीमित रह गया है l ऐसे में देश के प्रधानमंत्री का सपना मेरा स्वच्छ भारत की भी धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं ।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पानीपत में लगी सैंकड़ो की संख्या में फैक्ट्रियां हजारों लोगों को रोजगार दे रही हैं l लेकिन ये भी सच है कि इन फैक्ट्रियों ने शहर में गंदगी मचा रखी है और आमजन की ज़िंदगी को दिन रात तबाह करने में जुटी हुई हैं l पानीपत में लगी फैक्ट्रियों से न सिर्फ 24 घण्टे जहरीला धुंआ निकलता है बल्कि इन फैक्ट्रियों से जहरीला डाई यूनिट का पानी निकलता है जो सड़कों पर खड़ा रहता है जिससे न सिर्फ मच्छर पैदा हो रहे हैं बल्कि न जाने कितनी बीमारियों को जन्म दे रहा है l इतना ही नहीं इलाके में लगी वूलन फ़ैक्टरियों ने तो इतनी तबाही कर रखी है कि अपनी फैक्ट्रियों के पीछे बड़ी बड़ी मशीनों के बड़े बडे पंखों के कॉलोनियों की तरफ मुंह खोल रखे हैं और जिनसे दिन रात बहुत भारी धूल निकलती है जो आसपास के लोगों में दमे की बीमारी बन रही है l कालोनी वासियों ने असंख्य बार प्रशासन से इसकी गुहार भी लगाई है लेकिन कुछ नहीं हुआ l
जब हमारी टीम ने काबड़ी रोड स्थित ओल्ड इंडस्ट्रियल एरिया का कई दिन दौरा किया ,जहां देखा गया कि इस इलाके में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी से सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा है अगर आपको ज़िन्दगी की कीमत जाननी है तो आप इस इलाके में एक बार दौरा कर लीजिए और देख लीजिए यहां रहने वाले लोगों की ज़िंदगी कितनी सस्ती है l
हम बात कर रहे हैं पानीपत के ओल्ड इंडस्ट्रियल इलाके में इंदिरा कॉलोनी की जहाँ, राज ओवरसीज, जिंदल फैक्टरी सुनील चौधरी वुलनमील्स ,ऐसे ही दो चार नाम वालो का इस इलाके में कब्जा है ज्यादातर इन्ही की फैक्ट्रियां यहां लगी हुई हैं l ये सभी हद से ज्यादा प्रदूषण फैला रही हैं l जब हम इंद्रा कॉलोनी में राज फैक्ट्री के पास पहुंचे तो वहां झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाले बच्चों और उनके माता- पिता ने घेर लिया और फैक्टरी से उनके घरों और उनकी सांसो में जाने वाली भेड़ो के बालों की धूल को बंद करवाने की हाथ जोड़कर मांग की ,जब हमने इस बारे में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के
अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने भी सिर्फ ऐसे फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया और कहा तुरंत प्रभाव से जो फैक्ट्रियां पोलूशन फैला रही हैं ,उनको बंद करने के निर्देश दिए। लेकिन हालात जो के त्यों बने हुए हैं और जनता परेशान है l
जब इस इलाके के पार्षद दुष्यंत भट्ट से हमने बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदूषण फैलाने और डाई हाउस से निकलने वाले केमिकलयुक्त फैक्ट्रियों के मालिकों के खिलाफ अपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाने चाहिए।पार्षद भी इस
मामले से निपटने मजबूर नजर आये।
जो डाइंग यूनिट डाई का जहरीला पानी छोड़ रही हैं जब उनके मालिकों से हमने बात की तो उन्होंने सरकार व् प्रशासन पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि सरकार ने जो पानीपत में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया है उसको
क्यों चालू नहीं किया जा रहा और जो शिविर लगाए गए हैं वह क्यों बंद पड़े हैं उनको क्यों ठीक नहीं करवाया जा रहा, जब सीवर ठीक नहीं होंगे तो पानी तो सड़कों पर ही आएगा ,कहा हमारा जो पानी आता है शिविर के जरिए आता है।
जब पानी को आगे कहीं रास्ता नहीं मिलता तो वह सड़कों पर खड़ा हो जाता है जिसके लिए नगर निगम, शहरी विधायक और प्रशासन जिम्मेदार है। जिन्होंने सालों से इस इलाके की सड़कों को बनाने के लिए ठेका दिया हुआ है, उस ठेकेदार से बात करनी चाहिए और उस पर मोटा जुर्माना लगाना चाहिए।
आपको बता दें कि शहर में प्रदूषण फ़ैलाने के लिए जितने फैक्ट्री मालिक जिम्मेदार है। उसी तरह पानीपत शहर का प्रशासन, विधायक और नगर निगम मेयर भी जिम्मेदार हैं। क्योंकि पानीपत शहर में सफाई के लिए प्रति महीना 5 करोड रुपए खर्च किए जाते हैं। लेकिन अगर ओल्ड इंडस्ट्रियल एरिया की बात की जाए तो यहां सफाई नाम की कोई चीज देखने को नहीं मिलती, सड़कें एक 1 साल से उखड़ी पड़ी हुई है, सड़कों पर पानी खड़ा रहता है। आने जाने वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं पिछले दिनों पानीपत शहर को प्रदूषण फैलाने में पहला स्थान प्राप्त हुआ था। बावजूद उसके भी पानीपत शहर में प्रदूषण को कम करने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे। और ना ही इन फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जा रही। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री का सपना मेरा स्वच्छ भारत भी फेल होता नजर आ रहा है।