भीलवाड़ा -लड़की ने दी कोर्ट में तलाक की अर्जी कहा ,टॉयलेट न होने से होती है शर्मिंदगी

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किशोर सिंह / भीलवाड़ा – टॉयलेट फिल्‍म में तो टॉयलेट बनाने के लिए पति मान जाता है लेकिन वास्‍तविकता में एक पत्नि ने टॉयलेट नहीं बनाने पर अपने पति से तलाक ही ले लिया। जी, हां  ऐसा ही एक मामला  भीलवाड़ा शहर के पास बसे आटूण गांव का है। भीलवाड़ा की लड़की की शादी आटूण में हुई। वह शादी के बाद ससुराल पहुंची तो पता चला कि घर में टॉयलेट ही नहीं है। यह परेशानी उसने ससुराल वालों को बताई, लेकिन उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की l

आखिर लड़की ने सदर थाने में प्रताड़ना की रिपोर्ट दी। जांच के बाद मामला पिछले साल फैमिली कोर्ट में पहुंचा। जज राजेंद्र शर्मा ने घर में टॉयलेट ने होने को महिला की निजता पर चोट माना और तलाक की अर्जी मंजूर कर ली। जस्टिस राजेंद्र शर्मा ने फैसले में कहा कि क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां अौर बहनों को खुले में टॉयलेट करना पड़ता है। गांवों में महिलाएं रात होने का इंतजार करती हैं। अंधेरा नहीं होता, तब तक वे टॉयलेट के लिए बाहर नहीं जा सकतीं। इससे उन्हें शारीरिक यातना होती है। क्या हम अपनी मां-बहनों की गरिमा के लिए टॉयलेट का इंतजाम नहीं कर सकते? 21वीं सदी में खुले में टॉयलेट की प्रथा समाज के लिए कलंक है। शराब, तंबाकू और मोबाइल पर बेहिसाब खर्च करने वाले घरों में टॉयलेट नहीं होना विडंबना है।

अधिवक्ता राजेश शर्मा ने कहा कि शहरी क्षेत्र की इस महिला ने पति के खिलाफ तलाक याचिका पारिवारिक न्यायालय में 20 अक्टूबर 2015 को पेश की। महिला ने याचिका में बताया कि उसकी शादी 2011 में हुई थी। पति उसे  घर में टॉयलेट बनाकर नहीं दे रहा है। मजबूरन उसे खुले में शौच जाना पड़ रहा है। इससे उसे शर्मिंदगी होती है।  न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश राजेंद्रकुमार शर्मा ने पति के टॉयलेट नहीं बनाकर देने को पत्नी के लिए मानसिक कू्ररता और त्रासदीपूर्ण स्थिति मानते हुए महिला के पक्ष में तलाक याचिका मंजूर कर ली। न्यायाधीश ने यह की टिप्पणी- प्रार्थिया ने विवाहित महिला होने के नाते यह मांग की थी कि उसके लिए घर में सोने-उठने-बैठने के लिए अलग कक्ष होना चाहिए। महिला की ऐसी मांग करना गैर वाजिब नहीं समझा जा सकता। साथ ही एक महिला होने के नाते प्रार्थिया को यह अधिकार है कि उसकी निजता और स्त्रीयोचित गरिमा बनी रहे।