हिंदू समाज में कर्मकांड को नहीं आचरण को दिया जाता है महत्व – डॉ. गोपाल

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करनाल – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हिंदू को एक पूजा-पद्धति के साथ जोडऩा संभव नहीं है। हिंदू सभी पूजा-पद्धतियों को साथ ले कर चलता है। जैसे जंगल में हर पौधे को बढऩे की छूट है वैसे ही हिंदू धर्म में सभी को फलने-फूलने का अवसर प्राप्त है। हिंदू किसी को नरक में भेजने की नहीं बल्कि सभी की मंगलकामना करता है। हिंदू समाज में कर्मकांड को नहीं आचरण को महत्व दिया जाता है। आप पूजा कितने समय करते हैं इसका महत्व नहीं है बल्कि आपके पड़ोसी के साथ सम्बन्ध कैसे हैं यह महत्व का विषय है। जो विश्व कल्याण की कामना करता है वह हिंदू है और जो दूसरों के अमंगल की कामना करता है वह अहिंदू है। डॉ. कृष्ण गोपाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा केआईआईटीएम इंस्टीच्यूट में रविवार को आयोजित तीन दिवसीय तरूण संगम के समापन अवसर पर स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर स्वयंसेवकों ने चैत्र वर्ष प्रतिपदा में डॉ. हेडगेवार के जन्मदिवस पर सम्मान स्वरूप  ‘आद्य सरसंघचालक प्रणामÓ भी किया। कार्यक्रम के समापन अवसर पर करनाल के आस-पास के क्षेत्र से नागरिकों ने भारी संख्या में भाग लिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मंच पर शिविर अधिकारी धम्मपाल चौहान, विभाग संघचालक डॉ. ओमप्रकाश तथा परिव्राजक हरिओम तिवारी भी मौजूद रहे।
उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना के समय से ही संकल्प लिया कि हिंदू समाज को खड़ा करना ही संघ कार्य है तथा उसे आत्मविस्मृति के बोध से जगाना है। हिंदू समाज की दयनीय स्थिति को बदलने के लिए ही प्रत्येक अंग को संगठित करना इसका ध्येय है। उन्होंने कहा कि युवाओं में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। इसका मुख्य कारण हमारा लंबे समय तक पराधीन रहना है। विजित जाति ने भारत की सम्पदा को लूटने के साथ-साथ भारत के आत्मसम्मान को भी तोडऩे का काम किया। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव युवाओं में इस कदर बढ़ चुका है कि वे अपने 12 महीनों के नाम भी ठीक से नहीं बता पाते। जबकि खगोलीय शास्त्र का ज्ञान प्राचीन काल से ही भारत में ही मौजूद था। रामायण, महाभारत जैसे आदिग्रंथों में भी ग्रहों-नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि जो जीवन दूसरों की भलाई में लगे वह सार्थक हो जाता है और जीवन का सार्थक होना सफलता से भी बढ़ कर है। सभी स्वयंसेवक जीवन को सार्थक व सफल बनाने का प्रयास करें तभी वह अच्छे स्वयंसेवक कहलाएंगे। शिविर कार्यवाह एवं कुरुक्षेत्र विभाग के सह-कार्यवाह डॉ. प्रीतम सिंह ने शिविर की जानकारी देते हुए बताया कि इस तीन दिवसीय शिविर में विभाग के 160 मंडलों में से 94 मंडलों का प्रतिनिधित्व रहा। 182 गांवों में से लगभग 800 शिक्षार्थी शिविर में प्रशिक्षण हेतु आए थे।

स्वयंसेवकों ने सामूहिक शारीरिक प्रदर्शन से दर्शकों को किया अचंभित
केआईटीएम इंस्टीच्यूट में आयोजित तीन दिवसीय कॉलेज विद्यार्थी शिविर के समापन अवसर पर स्वयंसेवकों ने सामूहिक शारीरिक प्रदर्शन किया। सामूहिक शारीरिक प्रदर्शन में स्वयंसेवकों ने योग व्यायाम, सूर्य नमस्कार व विभिन्न योगासनों से उपस्थित जनसमूह को अचंभित कर दिया।  इस दौरान स्वयंसेवकों के बीच खेलकूद प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गई। एक स्वयंसेवक ने एक मिनट में 117 सतत् योग किए तथा एक स्वयंसेवक ने 5 मिनट में 62 सूर्य नमस्कार किए। जबकि दंडपेल प्रतियोगिता में एक स्वयंसेवक ने 53 दंड लगाए।

क्या है तरूण संगम का उद्देश्य
तरूण संगम का मुख्य उद्देश्य विशेष रूप से युवा वर्ग को हिंदू संस्कृति एवं समाज के साथ जोड़ कर राष्ट्र को सशक्त बनाना है। इसके साथ ही अपने गौरवमयी इतिहास को युवा पीढ़ी तक  पहुंचाना है। इस तरह के शिविर के माध्यम से संघ द्वारा युवाओं का चरित्र निर्माण कर उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए तैयार किया जाता है ताकि शिविर में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्वयंसेवक समाज में विभिन्न कार्यक्षेत्रों में जाकर एक आदर्श स्थापित कर सकें।

स्वयंसेवकों के लिए हर घर से पहुंचा भोजन
केआईटीएम इंस्टीच्यूट में आयोजित तरूण संगम में स्वयंसेवकों के लिए सब्जी, चावल शिविर में ही तैयार किया जाता था। जबकि रोटियां करनाल के आस-पास के गांवों से परिवारों द्वारा
शिविर में भेजी जाती थी। दो समय के भोजन के लिए प्रतिदिन खंड के 10 गांवों से लगभग 7000 रोटियां आती थी। शिविर में रोटियां लेकर आने के लिए 20 कार्यकर्ताओं की एक टोली लगी हुई थी। भोजन एकत्रीकरण का मुख्य उद्देश्य स्वयंसेवकों में सामाजिक समरसता की भावना पैदा करना तथा समाज के लोगों को संघ की गतिविधियों से परिचित करवाना है।