दिल्ली विशेष -जेएनयू और शाहीन बाग किसकी उपज

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दिल्ली विशेष – जेएनयू से शुरू हुए देश में जगह जगह और अब शाहीन बाग में पहुंचे आज़ादी मांगने और देश विरोधी नारों ने पूरे देश में किस कदर बवाल मचाया इससे सभी वाकिफ हैं l हद तो तब हो गई ज़ब अलग नेता से लेकर अभिनेता तक उन्हें स्पोर्ट देकर राजनीति करने लगे l काफी समय से हमारे देश में जैसे होड़ मची हुई है जो कोई जितना देश के खिलाफ बोलेगा वो उतना बड़ा हीरो बन जाएगा ,क्योंकि इसकी रही सही कसर मीडिया पूरी कर देता है l रातोंरात मीडिया द्वारा इन्हे हीरो बना दिया जाता है चाहे इन पर देशद्रोह के केस दर्ज हों या जमानत पर छूटे हुए हों l  ऐसे लोगों की हमदर्दी का कारण साफ तौर पर केवल सरकार का विरोध ही होता है l एक तरफ ओछी राजनीति होती है  तो दूसरी तरफ मीडिया द्वारा उनके भाषणों को लाइव दिखाकर और अख़बारों की सुर्खियां बनाकर रातोंरात उन्हें हीरो बना दिया जाता है l  चाहे  कन्हैया हो या उमर खालिद देश में ऐसे अनेक उदाहरण हैं  l

देश में चौथा स्तम्भ माने जाने वाले मीडिया की अब वो छवि नहीं रही जो पहले थी l सोशल मीडिया के जमाने में काफी कुछ लोग सोशल मीडिया पर ही निपटा लेते हैं भले ही उसमें काफी फेक हो l मीडिया के स्तर में ऐसी गिरावट देखी जा रही है कि बड़े बड़े चैनल भी रेप जैसी घिनौनी खबर पर कहते शर्म नहीं करते कि यह एक्सक्लूसिव खबर हमने सबसे पहले आप तक पहुंचाई l एक नेता ने एक मीटिंग में मीडिया के लिए यहाँ तक कह डाला कि भैया एक पत्थर तो हटाओ पत्रकार ही पत्रकार l बताइए ये वही मीडिया है जिसे समाज में कुछ खबर में देने के लिए बहुत मिन्नतें करनी पड़ती थी कि किसी तरह कवर हो जाए लेकिन अब ये ही नहीं पता चलता कि खबर वास्तव में है क्या l ख़बर की कब्र बनाने वाले ख़बर से हज़ारों गुणा मौजूद हैं वो भी लाइव l इन सभी प्रदर्शनों में एक खास बात यह कि अबकी बार सभी प्रदर्शनों में महिलाओं को जानबूझकर आगे किया गया है l

जेएनयू में फ़ीस से शुरू हुआ बवाल नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध के रूप में फ्री कश्मीर और अफजल की फांसी तक पहुंच गया या यूँ कहिये कि पहुंचा दिया गया l एक मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक जेएनयू में पढ़ने वाले हर छात्र पर सरकार सालाना लगभग 3 लाख रुपया खर्च करती है l फ़ीस बढ़ाने और कमरे का किराया 20 रूपये से बढ़ाकर 300 रूपये कर देने की इतनी पीड़ा सहने वाले जेएनयू के इन गरीब प्रदर्शनकारियों को शायद नहीं पता कि देश में माता पिता कड़ी मेहनत से अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए फ़ीस पर सलाना लाखों का खर्चा करते हैं l जम्मू कश्मीर में अपने ही देश से अपने ही देश में बेगाने हुए कश्मीरियों के साथ मारकाट और निकाले जाने के समय पर ये प्रदर्शनकारी और जागरूक मीडिया न जाने कहां लाइव पर गया था l  मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने जेएनयू हिंसा को लेकर आई पुलिस रिपोर्ट को लेकर ट्वीट किया और कहा कि विश्वविद्यालय को हिंसा और राजनीति का अड्डा नहीं बनने दिया जाएगा।  देश में जगह जगह पहुंचाए गए प्रदर्शन में कुछ मुट्ठी भर लोग अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर इन छात्रों और प्रदर्शकारियों के साथ खड़े तो हो गए । क्या उनसे किसी ने ये पूछा कि तुममें से कितनों के देश छोड़ने के आदेश हो गए कि तुम प्रदर्शन कर रहे हो l चाहे सरकार द्वारा कितना ही समझाया जा रहा है कि ये नागरिकता लेने का नहीं देने का बिल है लेकिन विरोध के लिए इसे जानबूझकर समझा ही नहीं जा रहा है और गलत प्रचार की तरफ इसे धकेला जा रहा है l  दिल्ली में आमतौर  पर कई कई घंटे जैसी जाम की बदतर स्थिति से भला कौन नहीं गुजरा होगा , अब शाहीन बाग़ के आसपास से गुजरने वाले लोगों की जिंदगी नरक से भी बदतर हो रही है l चाहे जेएनयू का प्रदर्शन हो या दिल्ली के शाहीन बाग़ का देश में कइयों की मंशा निकलकर जरूर बाहर आई है और यह भी साफ हो गया है कि प्रदर्शन के पीछे कौन देश विरोधी लोग हैं l

मीडिया काफी समय से  इन्ही खबरों के पीछे रेस लगाकर भाग रहा है क्योंकि गलत खबरें ज्यादा चलती हैं ,उनको अपनी दुकान चलानी है सत्य पर आधारित मीडिया नहीं l  क्या अमेरिका में चीन में कभी देश विरोधी नारे लगते हैं या मीडिया द्वारा बढ़चढ़कर दिखाये जाते हैं ?  ऐसा नहीं कि वहां कोई समस्याएं नही हैं  ,समस्याएं हैं लेकिन वहां अपने मुल्क से प्रेम पहले है। हिंदी के पहले समाचार पत्र उदंत मार्तंड का ध्येय वाक्य था- ‘हिंदुस्थानियों के हित के हेत’। अर्थात् देशवासियों का हित-साधन। हमने देखा दिल्ली में फ़ीस के बवाल को कैसे नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में बदल दिया गया और वहां जितने प्रदर्शनकारी कहीं उससे भी ज्यादा मीडिया के लोग उन्हें लाईव दिखाने को तैयार , जैसे देश में कोई और समस्या ही नहीं सिर्फ यही सबसे जरूरी मुद्दा है जितना बढ़ाया गया और यही नहीं बल्कि मीडिया द्वारा उसे ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया गया l आज समय ऐसा है कि कोई भी चैनल देखने पर या अख़बार पढ़ने पर उसकी विचार धारा स्पष्ट दिखाई देती है। समाज में लोग भी इस तरह बात करते हैं कि फलां चैनल और अखबार फलां पार्टी या विचारधारा का है । अब ऐसे हालात हों और मीडिया को लेकर  समाज में ऐसी चर्चा न हो ये कैसे हो सकता है l लेकिन इससे मीडिया की विश्वसनीयता जरूर खत्म होती जा रही है जो उसके लिए बिलकुल ठीक नहीं है। समाज के जानकर ये भी मानते हैं कि मीडिया भी देश में रहने वाले लोग ही चलाते हैं तो देश में राष्ट्रवाद सबसे ऊपर होना चाहिए , यानि मीडिया में राष्ट्रवाद का गुण जरूर होना चाहिए जिसकी आजकल अनुपस्थिति नज़र आ रही है ।