अजमेर में एक अनूठी दरगाह मस्जिद भी यही और मंदिर भी

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किशोर / अजमेर – वेसे तो अजमेर पूरी  दुनिया में धार्मिक नगरी के नाम से मशहूर है  क्योंकि  यहाँ एक और जहाँ सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हशन  चिश्ती  की दरगाह है तो वही दूसरी और ब्रह्मा की नगरी पुष्करराज है …. लेकिन इनके साथ साथ यहाँ एक और बात है एक ऐसी की अनूठी बारगाह और है जिसकी वजह से भी इस शहर को जाना जाता है वो हैं बाबा बादामशाह की बारगाह जहाँ पर उसी परिसर में मंदिर भी है तो मस्जिद भी और गुरुद्वारा भी …इस बारगाह से सिर्फ एक ही पैगाम निकलता है भाईचारे का …. क्या है इस जगह की  खासियत जानिए l

अरावली पर्वत श्रंखला के बीच बसी ये खूबसूरत दरगाह बाबा बादाम शाह की है हम इस जगह से रूबरू कराये उससे पहले हम आपको बाबा बादाम शाह के बारे में बताना चाहेंगे …. बाबा बादाम शाह सन 1921 में यूपी से अजमेर आये थे बाबा जब अपने पेतृक गाँव में सरकारी नौकरी किया करते थे तब से ही उनके मन में पीर फकीरो और साधू महात्माओ की तरह जिंदगी बसर करने का सपना था जब उनके ये जज्बात उनकी बहन को पता चला तो उन्होंने इनकी मदद की और इनको अपनी जिंन्दगी अपने तरीके से जीने के लिए कह दिया तब बाबा अपना सबकुछ छोड़कर निकल पड़े आध्यात्म की खोज में
बाबा खुद धर्म से मुसलमान थे लेकिन जब वो घर से निकले तो सबसे पहले जिस व्यक्ति से इनकी मुलाक़ात हुई वो हिन्दू  थे और यही वजह रही की इनके मन में कभी भी जाति और धर्म का ख्याल नहीं आया बाबा ने केवल एक मकसद को चुना और वो था भाईचारे इंसानियत का  …
बाबा बादाम शाह जब अजमेर आये तो उनको यहाँ एक पीर मिले जिन्होंने बाबा को सोमलपुर गाँव भेजा और वहीँ रहकर तपस्या करने के लिए पीर की बात मानते हुए बाबा ने कई सालो वहां रहकर इबादत और तपस्या की और 1964 में इसी जगह को उन्होंने अपना आशियाना बना लिया। …. जब बाबा वहां दिन बसर करने लगे तो गाँवों के कई लोग उनके पास आते थे जिसमे सभी कोमो के लोग शामिल थे !
यह एक ऐसा स्थान बनाया जहाँ पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं रहा और यही वजह है की इस एक ही जगह पर आपको मंदिर और मस्जिद एक साथ मिलेंगे जहाँ नमाज और आरती एक साथ देखने को मिलेगी साथ ही यहाँ आने वाले जायरीन और श्रद्धालु सभी धर्मो के देखे जा सकते है ….l
इस दरगाह की यही खासबात है कि  यहाँ के पुजारी और खिदमत करने वाले हिन्दू है लेकिन यहाँ जुड़े और लोग भी है जो सभी जाति  धर्म से है यहाँ पर हर साल बाबा का उर्स मनाया जाता है और उस दिन यहाँ सभी श्रद्धालु प्रसाद पाकर अपने आप को धन्य मानता है अकीदमंदो का हुजूम दूर -दराज से चादर पेश करने पहुंचे सूफियाना कलामों के साथ मजारे शरीफ पर चादर पेश कर दुआए मांगी गयी ! यह एक ऐसा मुकाम है जहाँ जाति धर्म के भेदभाव को नकारा जाता है और सभी इस दर पर आते है और उनकी मन्नते पूरी होती है !
दरगाह से जुड़े श्रद्धालु जब इस जगह आते है तो उनका कहना है की जो सुकून दुनिया में कहीं नहीं है वो उन्हें यहाँ आकर मिलता है और वे ये भी मानते है की दुनिया की ये पहली जगह है जहाँ पर मंदिर और मस्जिद एक जगह पर है