बंजार (हि०प्र०) – ढोल-नगाड़ों की थाप व शहनाई की गूंज के साथ हजारों श्रद्धालु शरीक हुए श्रृंगा ऋ षि की भव्य यात्रा में

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कौशल/बंजार –  बंजार घाटी की 36 पंचायतों का एतिहासिक 5 दिवसीय  जिला स्तरीय बंजार मेला मंगलवार को देवता श्रृंगा ऋ षि के बंजार पहुंचते ही शुरू हुआ। वर्षों से देव परंपरा का निर्वाह करते हुए देवता
श्रृृंगा ऋ षि की भव्य जलेव यात्रा फ ोरेस्ट कलोनी से हजारों श्रद्धालुओं व हारियानों सहित दर्जनों वाद्य यंत्रों के साथ निकली। जैसे ही जले व यात्रा मेला ग्रांउड में पहुंची तो नजारा देखने योग्य था। फू ल-मालाओं व
स्वर्ण गहनों से सुसज्जित देवता का स्वर्ण रथ देखते ही प्रत्येक श्रद्धालु श्रृंगा ऋ षि की जयकारों की घोष से गंूज उठा। अपने अस्थाई शिवर पहुंचने से पहले उनके संग चलने वाले शूरवीर देवता खोडू के गुर संग देव
कार्य विधि कर श्रृंगा ऋ षि के गुर ने आर्शीवाद दिया। जैसे ही ऋ षि के रथ को अस्थाई शिविर में बैठया तो दशर्न के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। इस मौके पर जहां बंजार की तमाम जनता ने श्रृंगा ऋ षि के दर्शन किए व विदेशियों के साथ हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए श्रद्धालुओं ने भी दर्शन कर आर्शीवाद प्राप्त किया। मेला कमेटी ने भी बंजार पहुंचने पर देवता का भव्य स्वागत किया। बंजार मेला जहां श्रृंगा ऋ षि को समर्पित है l
वहीं घाटी  के अन्य देवी-देवताओं ने भी मेले में शरीक होकर मेले की शोभा बढ़ाई है। इसके अलावा बंजार के अन्य देवी-देवताओं ने भी भाग लिया। उक्त देवताओं ने श्रृंगा ऋ षि के साथ मिलन कर अपने-अपने अस्थाई  शिविरों में बैठे। यह दर्जनों देवता 5 दिन तक मेला बंजार में ही अपने अस्थाई शिविरों में रहेगें। लिहाजा देवालयों की भांति जहां, यहां रोजाना 4 पहर विधिवत पूजा अर्चना होती रहेगी, वहीं दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का भी सैलाब उमड़ा रहेगा। इस मेले में जहां देव आस्था का निर्वाह होता है वहीं यहां पहाड़ी संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। यहां के ग्रामीण महिला पुरूष पारंपारिक परिधानों में सज-धज कर मेले का लुत्फ  उठाते हैंं। वहीं व्यापारिक दृष्टि से मेले में करोड़ों रुपए का व्यापार के साथ-साथ गुच्छियों का व्यापार होता है। समापन अवसर पर यह सभी देवी-देवता अपने-अपने देवालय को प्रस्थान करते हैं l