समाज मे समस्याओ के साथ साथ सकारात्मक खबरों को भी समाज को प्रस्तुत करें – मुख्यवक्ता

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मुख्यवक्ता के तौर पर भाग लिया । भारतीय किसान संघ के प्रान्त संगठन मंत्री सुरेन्द्र जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की । इस कार्यक्रम में श्री रा० स्व० संघ भिवानी विभाग प्रचार प्रमुख कैलाश जी भी मौजूद रहे और उन्होंने विश्व संवाद केंद्र के बारे में जानकारी दी। नरेंद्र जी ने अपने विचार रखे और कहा कि पत्रकारिता का विषय एक ऐसा विषय है जो समाज को सही व गलत दिशा दे सकता है । आज अखबार, टी. वी चैनल व सोशल मीडिया से समाज का बहुत बड़ा वर्ग जुड़ा है और मीडिया जगत की बातों को सत्य मान कर उस पर विश्वास करता है इसलिए पत्रकारों का दायित्व बनता है कि वे अपने इस कार्य को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करे तथा तथ्यो को जांच परख कर प्रस्तुत करें। उनकी एक छोटी सी गलती समाज मे तूफान पैदा कर सकती है उन्होंने बताया कि  देवर्षि  नारद समाज कल्याण के लिए देव व असुरों में समान रूप से विचरण करते थे और खबरों का आदान प्रदान समाज की भलाई के लिए व धर्म को स्थापित करने के लिए करते थे हम उनसे सीखना चाहिए उन्होंने आज के समय मे पत्रकार बंधु किस प्रकार की समस्याओं से जूझ कर भी अपने कार्य को करते है उसकी चर्चा की और पत्रकारों का उत्साह वर्धन किया और उन्होंने बताया कि कैसे पत्रकार बंधु परेशान और सरकार से टक्कर ले कर समाज हित की खबरों को सम्प्रेषण करते है ।

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की तीन प्रमुख भूमिकाएं हैं- सूचना देना, शिक्षित करना और मनोरंजन करना। महात्मा गांधी ने हिन्द स्वराज में पत्रकारिता की इन तीनों भूमिकाओं को और अधिक विस्तार दिया है- लोगों की भावनाएं जानना और उन्हें जाहिर करना, लोगों में जरूरी भावनाएं पैदा करना, यदि लोगों में दोष है तो किसी भी कीमत पर बेधड़क होकर उनको दिखाना। भारतीय परम्पराओं में भरोसा करने वाले विद्वान मानते हैं कि देवर्षि नारद की पत्रकारिता ऐसी ही थी। देवर्षि नारद सम्पूर्ण और आदर्श पत्रकारिता के संवाहक थे। वे महज सूचनाएं देने का ही कार्य नहीं बल्कि सार्थक संवाद का सृजन करते थे। देवताओं, दानवों और मनुष्यों, सबकी भावनाएं जानने का उपक्रम किया करते थे। जिन भावनाओं से लोकमंगल होता हो, ऐसी ही भावनाओं को जगजाहिर किया करते थे।
 इससे भी आगे बढ़कर देवर्षि नारद घोर उदासीन वातावरण में भी लोगों को सद्कार्य के लिए उत्प्रेरित करने वाली भावनाएं जागृत करने का अनूठा कार्य किया करते थे। दादा माखनलाल चतुर्वेदी के उपन्यास ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ को पढऩे पर ज्ञात होता है कि किसी निर्दोष के खिलाफ अन्याय हो रहा हो तो फिर वे अपने आराध्य भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण और उनके प्रिय अर्जुन के बीच भी युद्ध की स्थिति निर्मित कराने से नहीं चूकते। उनके इस प्रयास से एक निर्दोष यक्ष के प्राण बच गए। यानी पत्रकारिता के सबसे बड़े धर्म और साहसिक कार्य, किसी भी कीमत पर समाज को सच से रू-ब-रू कराने से वे भी पीछे नहीं हटते थे। सच का साथ उन्होंने अपने आराध्य के विरुद्ध जाकर भी दिया। यही तो है सच्ची पत्रकारिता, निष्पक्ष पत्रकारिता, किसी के दबाव या प्रभाव में न आकर अपनी बात कहना। मनोरंजन उद्योग ने भले ही फिल्मों और नाटकों के माध्यम से उन्हें विदूषक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया हो लेकिन देवर्षि नारद के चरित्र का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि उनका प्रत्येक संवाद लोक कल्याण के लिए था। मूर्ख उन्हें कलहप्रिय कह सकते हैं। लेकिन, नारद तो धर्माचरण की स्थापना के लिए सभी लोकों में विचरण करते थे। उनसे जुड़े सभी प्रसंगों के अंत में शांति, सत्य और धर्म की स्थापना का जिक्र आता है। स्वयं के सुख और आनंद के लिए वे सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं करते थे, बल्कि वे तो प्राणी-मात्र के आनंद का ध्यान रखते थे।
उन्होंने पत्रकार बंधुओ से अपील की वे समाज मे समस्याओ के साथ साथ सकारात्मक खबरों को भी समाज को प्रस्तुत करें ताकि समाज मे सकारात्मक माहौल बने जो समाज को सही दिशा और जागरूकता प्रदान करे ।
कार्यक्रम में जिले की प्रचार विभाग की टोली व जिले के गणमान्य लोग भी उपस्थित हुए । कार्यक्रम के अन्त में कार्यक्रम के संयोजक कुलदीप बांगड ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा और राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ।