सोनीपत – भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से निकली पवित्र वाणी है भगवद गीता  

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रिपोर्ट -शिवकुमार/सोनीपत -हर धर्म का एक ग्रंथ होता है उसी तरह से हिंदू सनातन धर्म में गीता को धर्म ग्रंथ का स्थान दिया गया है। हिंदू धर्म में गीता एक बहुत ही पवित्र ग्रंथ माना गया है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा महाभारत के युद्ध के समय यह दिव्य ज्ञान दिया गया है। महाभारत ग्रंथ में गीता के कुल 18 अध्याय हैं। जिनमें से 6 अध्याय में कर्मयोग, 6 अध्याय में ज्ञानयोग और अंतिम 6 अध्यायों में भक्तियोग के उपदेश दिए गए हैं। श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं। गीता का ज्ञान आज के जीवन में भी व्यक्ति को सत्कर्मों की ओर अग्रसर करता है। गीता को गीतोपनिषद् के नाम से भी जाना जाता है। कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है। बताया जाता है कि कलयुग के प्रारंभ से 30 वर्ष पहले यानी लगभग 5140 वर्ष पूर्व ही गीता का जन्म हुआ। कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अपने सगे-संबंधियों को अपने प्रतिद्वंदियों के रुप में खड़े देखकर हतोत्साहित हुए अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता का संदेश दिया था। वास्तव में गीता मनुष्य के जीवन का सार है। गीता मनुष्य जाति को उसके कर्तव्यों व अधिकारों का बोध कराती है। गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया।

ग्रन्थ की भी जयंती मनाई जाती है
हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जिसमे किसी ग्रन्थ की भी जयंती मनाई जाती है। गीता जयंती मनाने का उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाए रखना है। कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है जो मनुष्य को सही व गलत का बोध करा सकता है।

मोक्षदायिनी एकादशी है मार्गशीर्ष की
एकादशी को भगवान् का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एक बार भोजन करके पारण करें (किसी व्रत या उपवास के दूसरे दिन किया जाने वाला पहला भोजन)। यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं :- ‘मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं।’ इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान् ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दु:ख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी।

जीवन ग्रंथ है गीता:-
गीता केवल ग्रंथ नहीं बल्कि कलयुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं वह पशु से भी बद्दतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान् का नाम लेना भी कठिन हो जाता है। दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है। इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान् द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फले और फुलेगा। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता जीवन जीने की पद्धति सिखाती है, जीवन को धन्य बनाती है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। भगवान् श्रीकृष्ण ने जिस दिन अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था उसे गीता जयंती  के रूप में मनाया जाता है यानी श्रीमद् भगवद गीता के जन्मदिन के तौर पर इस दिन को देखा जाता है। यह शुक्ल एकादशी के दिन मनाई जाती है और इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है।
श्लोक निरंतर देते हैं प्रेरणा:-
गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी जिंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दु:ख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है। गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है। इसमें पुरुषार्थ व कत्र्तव्य के पालन की सीख है :-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
अर्थात् कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है लेकिन कर्म के फल पर कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
गीता जयंती के दिन श्रीमद् भगवद् गीता के दर्शन करें। इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन कर उनसे सदा ही सद्बुद्धि देने के लिए प्रार्थना करें। संभव हो तो गीता के कुछ श्लोकों को भी पढक़र उनका अर्थ समझने का प्रयास करें।
नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयंतेयापो न शोषयति मारुत: ।।
सहित ऐसे अनेक श्लोक हैं जिन्हें पढऩे और उनका अर्थ समझने से मनुष्य को जीवन के कष्टों से न सिर्फ मुक्ति मिलती है, बल्कि वह जीवन के उस पथ को प्राप्त करता है जिसका ज्ञान स्वयं जगतज्ञानी परमेश्वर भगवान् श्रीकृृष्ण ने अर्जुन को दिया है।
कुछ उपाय लाभकारी रहते हैं :-

-इस दिन शंख का पूजन करना भी लाभकारी बताया गया है। पूजन के उपरांत शंख की ध्वनि से बुरी शक्तियां दूर होती हैं और लक्ष्मी का आगमन होता है। इस पूजन से भगवान् विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं। जिनके घर पर श्रीमद्भगवद् गीता नहीं है उनके लिए इस दिन इस पवित्र धार्मिक ग्रंथ को अपने घर लाना अत्यंत ही शुभ एवं लाभकारी माना गया है। कहा जाता है कि इससे मां लक्ष्मी सालभर के लिए घर में विराजमान होती है तथा कठिन परिस्थितियों में भी मनुष्य पथभ्रष्ट नहीं होता। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का पूजन भी अत्यंत ही उत्तम माना गया है। कहा जाता है कि इससे समस्त बिगड़े हुए काम बनते हैं एवं मनुष्य के जीवन में शांति का आगमन होता है।
-यदि परिवार में कलह, क्लेश या झगड़े से संबंधित समस्याएं हैं तो गीता जयंती से ही भगवद् गीता को पढऩा व इसके ज्ञान को जीवन में उतारना लागू करना चाहिए। माना जाता है कि इससे मनुष्य में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
-सामाजिक कार्यकर्त्ता को गीता के अनुसार अपना जीवन बनाने का प्रयास करना चाहिए  :-
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।
। जो कर्ता रागरहित, अनहंवादी, धैर्य और उत्साहयुक्त तथा सिद्धि और असिद्धि में निर्विकार है, वह सात्विक कार्यकर्ता कहा जाता है।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
अथार्त् श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

आज भी प्रासंगिक है भगवद् गीता:-

गीता की प्रासंगिकता भगवान् श्रीकृष्ण के युग के पहले भी थी और बाद के युगों में भी रही है। गीता के उपदेश भगवान् श्रीराम से ले कर लोकमान्य तिलक तक सभी के कर्मों में दिखाई दिए हैं। इसी प्रकार चाणक्य की नीतियों में भी हमें गीता का असर दिखाई देगा और यह आज के दौर में भी प्रासंगिक है। भगवान् श्रीकृष्ण ने भले ही द्वापर युग में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया लेकिन अगर देखा जाए तो उससे पहले त्रेता युग में भगवान श्रीराम के कर्मों में भी गीता के संदेशों को देखा जा सकता है। इसी प्रकार बाद के युगों में भी महापुरुषों के आचरण में गीता का असर देखा गया है। लोकमान्य तिलक गीता को अपनी माता मानते थे। इसी प्रकार अगर आज के परिस्थितियों में भी देखा जाए तो गीता के संदेशों का पालन करके ही समस्याओं का निदान किया जा सकता है। आज के युवाओं को इसे अपनी जीवन शैली में शामिल कर चाहिए। विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन भी गीता में ही पाया गया है।

भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से निकली पवित्र वाणी है भगवदगीता:-

हर धर्म का एक ग्रंथ होता है उसी तरह से हिंदू सनातन धर्म में गीता को धर्म ग्रंथ का स्थान दिया गया है। हिंदू धर्म में गीता एक बहुत ही पवित्र ग्रंथ माना गया है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा महाभारत के युद्ध के समय ज्ञान दिया गया है। महाभारत ग्रंथ में गीता के कुल 18 अध्याय हैं। जिनमें से 6 अध्याय में कर्मयोग, 6 अध्याय में ज्ञानयोग और अंतिम 6 अध्यायों में भक्तियोग के उपदेश दिए गए हैं। श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं। गीता का ज्ञान आज के जीवन में भी व्यक्ति को सत्कर्मों की ओर अग्रसर करता है। गीता को गीतोपनिषद् के नाम से भी जाना जाता है।