इन्द्री -शहीद-ए-आजम उधम सिहं के बलिदान दिवस पर सभी ने मिलकर श्रद्धा सुमन अर्पित किये 

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रिपोर्ट – मैनपाल कश्यप/ इन्द्री-शहीद उधम सिहं समिति द्वारा इन्द्री में आयोजित शहीद-ए-आजम उधम सिहं के 80वेें बलिदान दिवस पर सभी वर्ग, धर्म व सियासी दलों के नेताओं ने शहीद के चरणों में पुष्प अर्पित कर जनता के सामने आपसी सौहार्द एवं भाईचारे की मिसाल पेश की। इस समारोह की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष एम एस निर्मल ने की। हवन-यज्ञ से शुरू हुए समारोह में शहीदों के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगोंं ने शहीद की प्रतिमा पर जोश एवं आस्था के पुष्प अर्पित कर एकता का नमूना पेश किया। इस मौके पर शहीद उधम सिंह अमर रहे तथा भारत माता की जय के जयकारें गूंजते रहे।

इस मौके पर शहीद उधम सिहं समिति के अध्यक्ष एम एस निर्मल ने कहा कि शहीद उधम सिंह ने काम्बोज बिरादरी में जन्म लेकर काम्बोज समाज का गौरव बढ़ाया, लेकिन उन्हें जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा मारे गए 36 वर्ग के लोगों के सम्मान के लिए बिना उनकी जातपात देखे अंग्रेजों से उनके देश में जाकर खून का बदला लिया। शहीद उधम सिंह ने देश की जनता के लिए अपने प्रणों की आहूति देकर लोगों के सामने देश प्रेम एवं राष्ट्रवाद की अलख जगाई। सभी धर्मो का आदर करने वाले शहीद उधम सिंह ने राम मोहम्मद सिंह आजाद अपना नाम रखकर देश की एकता व अखण्डता का अद्भूत नमूना पेश किया।

उन्होंने कहा कि शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे में साधारण किसान टहल सिंह के घर में हुआ। उधम सिंह के बचपन में मां का निधन हो गया। इसके बाद पिता और भाई का भी साया उनके सिर से उठ गया। अनाथ हुए शहीद उधम सिंह को अमृतसर के अनाथ आश्रम में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। जब उधम सिंह ने जवानी की तरफ कदम रखा तो 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में बैसाखी के पर्व के दौरान इकट्ठा हुए निर्दोष लोगों पर अंग्रेज हकूमत के  गवर्नर माईकल ओयडवायर और जरनल डायर ने गोलियां चलवा 1800 से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इस दृश्य से उधम सिहं का खून खौल उठा तथा वहीं पर खून से सनी मिट्टी को उठाकर इस घटना के दोषियों को ऐसे ही गोलियों से भूनने का निर्णय ले लिया। इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वह इंग्लैंड गए तथा भरी जनसभा में ही दोनों आरोपियों से अपने भारतीय भाईयों की हत्या  का बदला लेने के इंतजार में करीब 21 वर्ष तक विकट परिस्थितियों से लड़ते रहे। आखिरकार वह दिन आ गया जिस दिन की वह इंतजार में तडप रहे थे। 13 मार्च 1940 को इग्लैंड के किग्ंसटन हाल में एक जनसभा हो रही थी और उसमें माईकओयडवायर हिन्दुस्तानियों की हत्या करने की सेखी बधार रहे थे तो उधम सिंह ने किताब में छुपाई अपनी पिस्तौल निकालकर माइकल ओ ड्वायर के सीने में गोलियां उतार दीं और उसे वहीं ढ़ेर कर दिया। तभी से शेरसिंह (असली नाम) को देश में उधम सिंह नाम से पहचान मिलने लगी l गोली चलाने के बाद भी उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया l ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई l उनका असली नाम शेर सिंह था और कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए ‘उधम सिंह’ नाम रखा था l

इस मौके पर पूर्व मन्त्री भीम मेहता, विधायक रामकुमार कश्यप, पूर्व विधायक राकेश काम्बोज,कांग्रेस नेता डॉ सुनील पवार ,मास्टर नरेंदर गोरसी , इन्द्री मार्किट कमेटी के वाईस चेयरमैन सुनील काम्बोज, काम्बोज एक्सपोर्ट के एमडी डॉ. शुभकरण काम्बोज, पंचायत समिति इन्द्री की  के पति चेयरपर्सन ऋषिपाल काम्बोज, नगरपालिका चेयरपर्सन शिवानी गोयल के पति अमित गोयल, भाजपा नेता पण्डित ध्र्मापाल शांडिल्य, नम्बरदार एसोसिएशन विचार मंच के प्रधान जगमाल सिंह काम्बोज, अनाज मण्डी आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान सतपाल सिंह बैरागी, काम्बोज सभा इन्द्री के सचिव मनोज काम्बोज, भाजपा नेता सुमेर काम्बोज, जसपाल बैरागी, वेद जोहड़माजरा, अनिल नन्हेड़ा, कर्मसिंह खानपुर, इनेलो नेता प्रदीप काम्बोज, भरत मढ़ान, अश्विनी काम्बोज, भाजपा नेता विनोद काम्बोज, सुमेर चन्द मण्डी, जजपा नेता इन्द्रजीत गोल्डी, बलजीत राणा,  रामपाल चहल, जोगिन्द्र सिंह, चरणजीत सिंह काम्बोज, जयप्रकाश फूसगढ़, जसविन्दर, कांग्रेसी नेता डॉ. सुनील पंवार, सचिन बुढऩपुर, सुरेन्द्र उड़ाना, देवेन्द्र बदरपुर, बलजीत सिंह सरपंच, पत्रकारों व छायाकारों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये  ।